दुख का मूल कारण अज्ञान : सुभाष शास्त्री
कठुआ : संत सुभाष शास्त्री ने कहा कि आज के दौर में कोई भी दुखी नहीं रहना चाहता है और सुख से कोई वंचित नहीं होना चाहता है। यह सब चाहत मन में संजोए कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि दुख का मूल कारण क्या है। वह सोमवार को कठुआ के जवाहर नगर में स्थानीय निवासी गणेश दत्त शर्मा की ओर से आयोजित सत्संग में उपस्थित संगत को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि वास्तव में दुख का मूल कारण अज्ञान है और इसके निर्वाण का उपाय है ज्ञान (सत्)। शास्त्री जी ने कहा कि सत् को छोड़ कर जितनी भी हमारी इच्छाएं हैं, वे हमें दुख ही देती हैं। ये इस मायावी संसार का नियम है कि एक इच्छा पूरी होते ही मन में दूसरी जन्म ले लेती है। यह क्रम नित चलता ही रहता है। नियम यह भी है कि हमारी हर इच्छा पूरी नहीं होती है और वहीं से शुरू हो जाता है हमारे दुखों का क्रम। इसलिए अगर सुखी होना है, तो इच्छाओं को कम कर दो और पूर्ण रूप से सुखी होना है तो सत्संग से पूर्णता का अनुभव करो। अल्प में सुख नहीं, पूर्ण में सुख है। अत: सत्संग का लाभ अवश्य लें।
शास्त्री जी ने समझाया कि दुखों का विशेष कारण है कि हमारे अशुभ और पाप कमरें का फल सदैव दुख ही है, सुख नहीं। यह सभी जानते भी है, फिर भी मनुष्य पाप क्यों करता है? क्यों दुख मोल लेना चाहता है। लोभ में आकर मनुष्य आचार-विचार, धर्म-अधर्म, कर्तव्य-अकर्तव्य, पाप पुण्य आदि सब भूल जाता है। लोभ से प्रेरित होकर सुखी होने के लिए चोरी, लूट-खसोट, हेरा-फेरी, घोटाला, धोखाधड़ी और कई प्रकार के पापाचार करता है। यह सब करके भी मनुष्य सुखी नहीं बल्कि ज्यादा दुखी हो जाता है। इसलिए लोभ पाप का मूल है। यह पुण्य फल को भी ग्रस लेता है। इसलिए इच्छाओं को तज, आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शुभ कर्म हुए धन अर्जित करें और लोभ का त्याग कर संतोष करें। उसका परिणाम सुख और परमानंद की प्राप्ति है। सत्संग का समापन आरती के साथ हुआ और बाद में भंडारे का आयोजन किया गया। मंगलवार को शहर के वार्ड 1 में प्रेम चंद शर्मा के निवास पर सत्संग का आयोजन होगा।