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आज हेरथ पर्व मनाएंगे कश्मीरी पंडित

जागरण संवाददाता, जम्मू : समूचा कश्मीरी पंडित समुदाय शुक्रवार को हेरथ त्रुवह के पावन अवसर पर श्रद्धा

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Feb 2017 11:52 AM (IST)Updated: Fri, 24 Feb 2017 11:52 AM (IST)
आज हेरथ पर्व मनाएंगे कश्मीरी पंडित
आज हेरथ पर्व मनाएंगे कश्मीरी पंडित

जागरण संवाददाता, जम्मू : समूचा कश्मीरी पंडित समुदाय शुक्रवार को हेरथ त्रुवह के पावन अवसर पर श्रद्धा व उल्लास के साथ भगवान शिव व उमा की पूजा-अर्चना करेगा। पूजा मुहुर्त को लेकर बने असमंजस के कारण कुछ पंडित परिवारों ने पारंपरिक रस्मों का निर्वाह करते हुए पर्व से एक दिन पहले अपने घरों में फूल-मालाओं से सजाए हुए बटुक की स्थापना की। हालांकि कई परिवार हेरथ के दिन ही बटुक स्थापना करेंगे।

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फूलों व रंगबिरंगी लड़ियों से सजे घरों के पूजा गृह में बटुक की स्थापना तो सुबह कर दी गई, परंतु पूजा का मुहुर्त शाम साढ़े नौ बजे के करीब होने के कारण परिवार के सदस्यों ने शाम को पूजा की विधि आरंभ की। भगवान शिव के रूप में स्थापित बटुक में अखरोटों को स्वच्छ जल में भिगो कर पूजा की विधि आरंभ हुई। बटुक में अखरोट के साथ मिश्री की कंद व दूध डाल कर प्रसाद का भोग भगवान शिव को लगाया गया।

अलका हांडू ने बताया कि बटुक पूजा चार पहर तक चलती रहेगी। उन्होंने बताया कि हेरथ त्रुवह शुक्रवार को साढ़े नौ बजे तक ही रहेगी और भगवान शिव व उमा की अराधना के साथ संपन्न होगी। फूलों व रंगबिरंगी लड़ियों से सजे घरों के पूजा गृह में विराजमान बटुक के साथ शुक्रवार को भैरव व गणों की पूजा के लिए भी पीतल के छोटे-छोटे बर्तन सजाए जाएंगे, जिनमें पूजा की सामग्री डाली जाएगी।

उन्होंने बताया कि समय के बदलाव और विस्थापन के साथ पंडितों में मिट्टी के घडे़ को वटुक के रूप में प्रतिष्ठित करने की प्रथा अब अपना स्वरूप बदल चुकी है। अधिकतर परिवारों में पीतल की छोटी सी गागर की स्थापना ही बटुक के रूप में की जाती है। उनके साथ ही पीतल के छोटे-छोटे बर्तनों में भगवान शिव के भैरव व गणों को भी भोग लगाया जाएगा। वहीं, राज्यपाल एनएन वोहरा ने भी राज्यवासियों को महाशिवरात्रि-हेरथ पर्व की बधाई दी। अपने बधाई संदेश में राज्यपाल ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में हमेशा से ही इस तरह के त्योहारों को सौहार्द एवं भाईचारे के साथ मनाने की परंपरा है। यह त्योहार ईश्वर भक्ति, भाईचारे और सद्भाव के मूल्यों का प्रतीक है, जो हमारे गौरवशाली सास्कृतिक लोकाचार की पहचान रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि राज्यवासी इस प्रथा को कायम रखने में अपना योगदान करते रहेंगे।


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