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चिल्ले कलां में सूखी सब्जियों खाकर कश्मीर की यादों में आज भी खो जाता है विस्थापित समुदाय

कश्मीरी पंडित समुदाय को कश्मीर से विस्थापित हुए बेशक 30 वर्ष का लंबे समय हो गया है लेकिन आज भी समुदाय कश्मीर की लोक संस्कृति को संजोय हुए है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 16 Jan 2019 10:11 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 10:11 AM (IST)
चिल्ले कलां में सूखी सब्जियों खाकर कश्मीर की यादों में आज भी खो जाता है विस्थापित समुदाय
चिल्ले कलां में सूखी सब्जियों खाकर कश्मीर की यादों में आज भी खो जाता है विस्थापित समुदाय

जम्मू, अशोक शर्मा : कश्मीरी पंडित समुदाय को कश्मीर से विस्थापित हुए बेशक 30 वर्ष का लंबे समय हो गया है लेकिन आज भी समुदाय कश्मीर की लोक संस्कृति को संजोय हुए है। चिल्ले कलां के इन सर्द दिनों में तो कश्मीरी समुदाय की कोशिश होती है कि जम्मू में बैठे भी वह अपने यह दिन ठीक उसी तरह से गुजारें जैसे कश्मीर में बिताया करते थे। ऐसे में कश्मीरी विस्थापित समुदाय के घरों में कांगड़ी तो रहती ही है। रसोई में कश्मीर की सूखी सब्जियां भी प्रदान हो जाती हैं।

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रोते बिलखते लाचारी की हालत में विस्थापित हुए कश्मीरी पंडित समुदाय बेशक अपनी करोड़ों की संपत्ति वहां छोड़ आया है लेकिन अपनी लोक संस्कृति को आज भी संजोय हुए है। सूखी कश्मीरी सब्जियों और दूसरी सौगातों की दुकानें इस समय लगभग हर कश्मीरी पंडित विस्थापित कालोनी के बाहर हैं। इतना ही नहीं जिन मोहल्लों में कश्मीरी पंडित समुदाय रहता है या किसी कश्मीरी की किरयाने की दुकान है तो उसने अपनी दुकानों पर कश्मीरी सूखी सब्जियां भी ारखी हुई हैं। फिर कश्मीरी पंडित समुदाय की कोई शादी विवाह हो तो उसमें भी कश्मीर की यह सूखी सब्जियां, खासकर सुखे खट्टे बैंग, और कई तरह की सूखी मछली खास व्यंजनों में शमिल होती हैं। कश्मीर का सूखा कदू, अल, फलियां, सूखे टमाटर, पत्ते वाला शलगम, कश्मीरी मिर्ची, बपलहार, बुम, कई तरह की सूखी मछली, कडम, गाजर का आचार आदि शामिल है।

विदेशों, दूसरे राज्यों में बैठे कश्मीरियों को सौगात की तरह भेजी जाती हैं सूखी सब्जियां

सुभाष नगर के दुकानदार अशोक कुमार बाचु ने बताया कि उनकी दुकान पर कई तरह की कश्मीरी सूखी सब्जियां हैं। इसके अलावा कश्मीर के मसाले, मेबे आदि भी उन्होंने रखे हुए हैं। बैसे तो वर्ष भर इन सूखी सब्जियों की विक्री होती है। लेकिन चिल्ले कलां, सर्दी के इन दिनों में आम दिनों के मुकाबले विक्री कुछ ज्यादा होती है।

शादी विवाह में आज भी कश्मीर की सूखी सब्जियां होती हैं विस्थापितों की पहली पसंद

विस्थापित कश्मीरी उपेंद्र अंबारदार ने बातया कि यह सूखी सब्जियां इतनी स्वादिष्ट होती हैं कि इन सब्जियों के कारण आज कश्मीरी पंडित युवा कश्मीर से जुडे़ हुए हैं। हमारे बच्चे जो पढ़ाई के लिए या काम करने विदेश में चले गए हैं। वह भी वहां से सूखी सब्जियों की डिमांड करते हैं। जम्मू में इन दिनों 20 से ज्यादा दुकाने ऐसी हैं, यहां कश्मीर की सूखी सब्जियां मिल जाती हैं। इस लिए विदेशों में रह रहे कश्मीरी पंडित समुदाय के युवाओं को सौगात के तौर पर यह सूखी सब्जियां भेजी जाती हैं। बच्चे भी यह सब्जियां पसंद करते हैं। भूषण लाल हंडु ने बताया कि बहुत से लोग कश्मीर की इन सूखी सब्जियों को आयुर्वेदिक दवाई की तरह प्रयोग करते हैं। खासकर जिस मौसम में जम्मू में यह ताजा सब्जियां नहीं मिलती तो लोग सूखी सब्जियों को प्राथमिकता देते हैं। कश्मीरी युवा रोहित भट्ट, अमित हंडू, मंजू रैणा, संजीव कौल ने कहा कि कश्मीर तो उन्होंने नहीं देखा लेकिन कश्मीरी की यह सूखी सब्जियां उन्हें बहुत पसंद हैं। शुरू में लगता था कि जब ताजा सब्जियां मिल जाती हैं तो इन सूखी सब्जियों काे खाने का क्या मतलब है, आज यह सूखी सब्जियां उनकी पहली पसंद है।


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