मोदी की डोज से जन औषधि को मिली संजीवनी
रोहित जंडियाल, जम्मू मरीजों का विश्वास जीतने में नाकाम रही जन औषधि योजना को फिर लागू करने के लिए प
रोहित जंडियाल, जम्मू
मरीजों का विश्वास जीतने में नाकाम रही जन औषधि योजना को फिर लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सहारा मिला है। इस बार जो दुकानें खोली जा रही हैं, उनका नाम प्रधानमंत्री जन औषधि योजना है। प्रधानमंत्री खुद इस योजना में रुचि दिखा रहे हैं। राज्य में दुकानें खोलने के लिए भी उत्साह देखा गया है।
राज्य में कुछ वर्ष पहले केंद्र सरकार ने जन औषधि योजना के तहत दवा दुकानें खोलने का जिम्मा रेडक्रॉस को दिया था। रेडक्रॉस ने राज्य के कई हिस्सों में दुकानें खोली भी थी। इनमें मेडिकल कॉलेज, एसएमजीएस अस्पताल भी शामिल हैं। इन दुकानों में दवाएं सस्ती होने के बावजूद यह दुकानें मरीजों का विश्वास जीतने में पूरी तरह से नाकाम रही थी। एक कारण इन दुकानों में पर्याप्त दवा न मिलना भी था। राज्य के सभी प्रमुख स्थलों पर खुली दुकानों में 60 से 70 दवाएं ही उपलब्ध थी। यही नहीं इनमें अधिकतर जेनेरिक दवा थी जबकि अधिकांश अस्पतालों में डॉक्टर मरीजों को ब्रांडेड दवाइयां लिखकर देते हैं। इस कारण भी इन दुकानों में मरीज नहीं पहुंचे थे।
इस बार योजना को लागू करने का जिम्मा ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया को सौंपा गया है। मरीज इन दवाओं पर विश्वास करे, इसके लिए सीधे प्रधानमंत्री को इस योजना के साथ जोड़ा गया है। इसका नाम प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना रखा गया है। राज्य में दुकानें खोलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है और दो महीने में ही डेढ़ सौ से अधिक प्रार्थना पत्र आ गए हैं। अब तक छह दुकानें खोली गई हैं। इनमें से चार कश्मीर और दो जम्मू संभाग में हैं।
प्रोजेक्ट की संयोजक रिफ्त नजीर का कहना है कि राज्य में एक सौ से अधिक दुकानें खोली जाएंगी। इनमें मरीजों को बाजार के मुकाबले बहुत कम कीमत पर दवा मिलेगी। उधर स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा मंत्री बाली भगत का कहना है कि रेडक्रॉस के पास संसाधनों की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट नहीं चल पाया था लेकिन इस बार इसके लिए पूरे प्रबंध किए गए हैं और इसमें मरीजों को जागरूक भी किया जाएगा।
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कम नहीं हैं चुनौतियां
जन औषधि प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए अभी बहुत चुनौतियां हैं। इन दुकानों में सिर्फ जेनेरिक दवा ही मिलेगी लेकिन अभी राज्य के अधिकांश सरकारी अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में ब्रांडेड दवा ही लिखी जाती हैं। यही नहीं वीरवार को जब इस प्रोजेक्ट का पहला कार्यक्रम जम्मू में हुआ तो उसमें अधिकांश विभागों के एचओडी मौजूद भी नहीं थे। बिना जेनेरिक दवा लिखे, इन दुकानों को चलाना आसान नहीं है।