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दफ्तरों में पारंपरिक ड्रेस में दिखेंगी कारगिल की महिलाएं

अवधेश चौहान, जम्मू बर्फीले रेगिस्तान कहे जाने वाले लद्दाख के कारगिल इलाके में महिला सशक्तीकरण की ए

By Edited By: Published: Tue, 17 Jan 2017 12:31 AM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 12:31 AM (IST)
दफ्तरों में पारंपरिक ड्रेस में दिखेंगी कारगिल की महिलाएं
दफ्तरों में पारंपरिक ड्रेस में दिखेंगी कारगिल की महिलाएं

अवधेश चौहान, जम्मू

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बर्फीले रेगिस्तान कहे जाने वाले लद्दाख के कारगिल इलाके में महिला सशक्तीकरण की एक अनूठी मिसाल कायम की गई है। अब यहां महकमों में काम करने वाली महिलाएं आने वाले दिनों में अपनी पारंपरिक वेशभूषा गोंचा में दिखेंगी। नब्बे फीसद महिलाओं ने यह ड्रेस पहनने की सहमति दिखाकर एक अनुशासन और अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने का मन बनाया है।

मोटी ऊन से बनी यह ड्रेस रंगदार तो होगी। इसके साथ कमरबंद भी होगा। इसके अलावा कमरबंद से नीचे महिलाएं एक पाजामा पहनेंगी। इस ड्रेस को चार चांद लगाने के लिए लम्बे पारंपरिक बूट भी पहने जाएंगे। वहीं, कारगिल और चांगथैंग क्षेत्र की महिलाएं इस ड्रेस में चटकीले रंग नहीं पहनेंगी और न ही अपनी ड्रेस को रंग करवाएंगी। उनकी ड्रेस साधारण से पारंपरिक रूप में होगी।

सिर पर एक कोबरानुमा एक टोपी होगी, जिससे वे काफी आकर्षित लगेंगी। यह टोपी भेड़ के बच्चे की खाल की बनी होती है। बर्फीले रेगिस्तान में जमा देनी वाली सर्दी में यह टोपी गर्माहट देगी। इस टोपी को पेर्क कहा जाता है। इसे आकर्षक बनाने के लिए इसमें नग भी जड़े जाते हैं। वैसे तो यह ड्रेस समारोहों में पहनी जाती है लेकिन अब यह सरकारी लिबास बन गया है। इस परंपरा से युवा पीढ़ी को यह संदेश दिया जाएगा कि वे अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखते हुए एकजुटता दिखाएं।

कारगिल के डिप्टी कमिश्नर हाजी गुलजार ने महिला सशक्तीकरण के लिए इस पारंपरिक ड्रेस को चुना है। अलबत्ता, पुरुष स्टाफ दफ्तरों में इस ड्रेस को पहनने से आनाकानी कर रहा है। उनका यह बहाना है कि अभी ड्रेस सिलने की दी है और वे इस आदेश का पालन करेंगे। हालांकि, इस ड्रेस को पहनने के लिए कोई पाबंदी नहीं है। फिर भी वह इस ड्रेस को पहन रहे हैं। इससे यहां की संस्कृति और परंपरा झलकेगी और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।


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