नक्सली हमले में दीपक ने पीया था शहादत का जाम
संवाद सहयोगी, रामगढ़ : जिस लाडले को अपने बडे़ भाई-भाभी की आखिरी निशानी समझ कर दुलार से पाला था, उसे
संवाद सहयोगी, रामगढ़ : जिस लाडले को अपने बडे़ भाई-भाभी की आखिरी निशानी समझ कर दुलार से पाला था, उसे मिटाने में नक्सलियों के हाथ तक नहीं कांपे। दिसंबर 2014 में छत्तीसगढ़ के सुकमा इलाके मे नक्सली हमले में दीपक ने शहादत का जाम पीकर अपना नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाया।
शहीद सीआरपीएफ सिपाही दीपक कुमार उर्फ दीपू निवासी कलाह, रामगढ़ अपने पिता तरसेम लाल व माता काता देवी की आखिरी निशानी था। छोटी उम्र में ही दीपक के सिर से पहले मा काता देवी का साया उठा फिर मा के देहात के करीब पाच साल बाद पिता तरसेम लाल भी स्वर्ग सिधार गए। शहीद दीपक व उसकी बहन रिंपी देवी के सिर से माता-पिता का साया उठ जाने के बाद उनका पालन-पोषण उसके चाचा बोध राज व चाची आशा देवी ने किया था। बिन मा-बाप के बच्चों को चाचा-चाची ने अपने बच्चों की तरह इतना प्यार दिया कि उनको कभी मा-बाप की कमी न खलने दी। करीब पाच साल पहले दीपू की इकलौती बहन रिंपी की शादी हो गई।
वर्ष 2012 मे शहीद दीपक को भी सीआरपीएफ में भर्ती होकर देश सेवा करने का मौका मिला। शुरू से ही देश की खातिर कुछ कर दिखाने का जज्बा रखने वाले सीआरपीएफ जवान शहीद दीपक कुमार ने आखिर देश की आन के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर वीरगति प्राप्त की। सीआरपीएफ जवान के नक्सली हमले मे शहीद होने से पूरे गाव कलाह को गहरा दुख है। आज भी शहीद दीपक की शहादत पर उसके हमउम्र के युवक उसकी कमी को महसूस करते हैं। शहीद के पालनहार चाचा-चाची को शहीद दीपक की शहादत पर गहरा दुख है।
कलाह गाव के लोगों को गम है कि जिस माता-पिता की आखिरी निशानी से उसके बाप का नाम जिंदा था। उस नाम पर नक्सलियो ने ऐसी कालिख पोत डाली जिसे कभी धोया नहीं जा सकेगा। दीपक की शहादत ने सीमात क्षेत्र को गहरे जख्म दिए हैं। इन जख्मों को भुला पाना गाव कलाह के लोगों के लिए आसान नहीं है।
21 अक्टूबर को मार्टेयर्स दिवस पर शहीद दीपक को भावभीनी श्रद्धाजलि देकर उनकी शहादत की गाथाओं को दोहराया जाएगा।