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घाटी में बदल रहे आतंकवाद के चेहरे

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : वादी में लगातार बदल रहे आतंकवाद के स्वरूप को देखते हुए सेना ने भी अपने आतंकव

By Edited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 01:00 AM (IST)
घाटी में बदल रहे आतंकवाद के चेहरे

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : वादी में लगातार बदल रहे आतंकवाद के स्वरूप को देखते हुए सेना ने भी अपने आतंकवादरोधी अभियानों से लेकर आतंकी संगठनों में स्थानीय युवकों की भर्ती पर लगाम लगाने के लिए अपनी रणनीति की समीक्षा कर उसे ओवरहॉल किया है। नई रणनीति में सरहद पार से घुसपैठ के प्रयासों से लेकर नए युवकों को बरगलाने जैसे मुद्दे भी शामिल किए गए हैं।

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गौरतलब है कि कश्मीर में बीते कुछ महीनों के दौरान सत्तर के करीब स्थानीय युवक आतंकी बने हैं। इनमें से 14 युवक विभिन्न मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं।

आतंकियों के लगातार बढ़ रहे दुस्साहस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह अब दूर देहात के गांवों में सेना की वर्दी पहन सैनिकों की तरह गश्त भी करते अपने फोटो भी फेसबुक समेत इंटरनेट की विभिन्न सोशल साइटों पर लगातार अपलोड कर रहे हैं। श्रीनगर स्थित सेना की 15वीं कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा ने पत्रकारों से बातचीत में कश्मीर में लगातार बदल रहे आतंकवाद के चेहरे पर चिंता जताते हुए कहा कि सवाल यह नहीं कि कितने नए लड़के आतंकी बने हैं। चिंता की बात यह है कि अब शिक्षित नौजवान भी बंदूक उठा रहे हैं। यह एक गंभीर समस्या है और इसे हल करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस समस्या के लिए हमें कोई क्विक फिक्स नहीं चाहिए बल्कि इसके लिए एक दीर्घकालिक प्रभावी योजना चाहिए।

साहा ने कहा कि बेशक कश्मीर में हम स्थिति को शांत और स्थिर कह सकते हैं। लेकिन जिस तरह से मोबाईल नेटवर्क को आतंकियों ने उत्तरी कश्मीर में ठप किया, नागरिकों की हत्याओं में तेजी आई और नए लड़के आतंकी संगठनों में शामिल हुए हैं, वह सामान्य नहीं है। वह सुरक्षा और अमन के लिए एक बड़ी चुनौती है। मैंने खुद सोपोर जाकर स्थिति का जायजा लिया है। वहां हुई हत्याओं की जांच की तो पाया कि सभी वारदातों में पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ है और आतंकियों ने उन्हीं जगहों पर हमले किए जहां से उनके भागने का सुरक्षित रास्ता उपलब्ध था।

कोर कमांडर ने कि हमने अपने तौर पर भी वादी में सक्रिय विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के साथ भी मिलकर आतंकरोधी अभियानों की सिरे से समीक्षा कर उनकी एक तरह ओवरहॉलिंग की है। आतंकियों द्वारा किन बातों का लाभ उठाया जा सकता है, किन इलाकों में उन्हें किस आधार पर समर्थन मिल सकता है, सभी संभावनाओं केा ध्यान में रखा गया है।

आइएसआइएस के वादी में झंडों का उल्लेख करते हुए कहा कि बेशक इक्का दुक्का झंडे निकले हैं, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आइएसआइएस अपनी तरफ नौजवानों को आकर्षित करने में पूरी तरह समर्थ है। इसलिए कश्मीर में इन झंडों की उपस्थिति को लेकर गहन जांच की जरूरत है। कश्मीर में हमें इससे बहुत ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।


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