नहीं रहे साहित्यकार वीरेंद्र केसर
जागरण संवाददाता, जम्मू : साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित डोगरी के विख्यात शायर वीरेंद्र केसर का नि
जागरण संवाददाता, जम्मू : साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित डोगरी के विख्यात शायर वीरेंद्र केसर का निधन हो गया है। वह 69 वर्ष के थे। पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार वीरवार को जोगी गेट श्मशान घाट में किया गया। उनके पुत्र धीरज केसर ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार में कई साहित्य प्रेमी एवं कलाकार शामिल हुए। शिक्षा विभाग से वर्ष 2003 में हेड मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए केसर के सात गजल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके पुत्र कवि धीरज केसर ने बताया कि उनकी पुस्तक 'गैल डुआरी' अभी प्रकाशन के लिए प्रिंटिंग प्रेस में है। अभी काफी सामग्री प्रकाशित होने वाली है। उनकी पहली पुस्तक 'गिल्ला बालन' वर्ष 1980 में प्रकाशित हुई थी। वर्ष 2002 में उन्हें गजल संग्रह 'निग्गे रंग' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1998 में गजल संग्रह 'सिरां' के लिए जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी ने सर्वश्रेष्ठ पुस्तक सम्मान से सम्मानित किया। उनकी कविताएं, गीत, गजलें अकादमी के शीराजा के अलावा सूचना विभाग से प्रकाशित योजना, लो आदि में प्रकाशित होती रही हैं। अकादमी, रेडियो और दूरदर्शन से प्रसारित कवि गोष्ठियों में भी केसर अपनी रचनाएं पढ़ते रहे हैं। उनके निधन पर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संगठनों ने शोक जताया है। जम्मू-कश्मीर राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की ओर से आयोजित शोक सभा में प्रो. सत्यपाल श्रीवत्स ने केसर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उनके आकस्मिक निधन से साहित्य जगत को नुकसान हुआ है। इसी पूर्ति संभव नहीं है। शोक सभा में नीरू शर्मा, प्रो. भारत भूषण, दीदार सिंह, अशोक शर्मा, अमिता मेहता, डॉ. सुनीता भडवाल उपस्थित थे। शोक सभा के अंत में दिवंगत की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। डोगरी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ज्ञान सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि दिवंगत केसर की गजल की शायरी की शब्दावली जितनी मुश्किल होती थी गीतों की शब्दावली उतनी ही कोमल है। उनके निधन से डोगरी साहित्य में उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी।