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चहुंओर दर्द, चिंता और बेबसी

By Edited By: Published: Tue, 09 Sep 2014 01:03 AM (IST)Updated: Tue, 09 Sep 2014 01:03 AM (IST)
चहुंओर दर्द, चिंता और बेबसी

रोहित जंडियाल, जम्मू

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कहीं अपनों से बिछड़ने का दर्द तो कहीं उनसे संपर्क न होने की चिंता। बाढ़ के कहर के आगे हर कोई बेबस है। कश्मीर में जहां-तहां फंसे लोगों के परिजनों के आंखों में आंसू हैं। उनके पास संदेश भेजने के लिए सोशल साइट्स ही एकमात्र सहारा है, जिन पर इन दिनों अपनों को ढूंढने के हजारों संदेश हैं।

इस समय कश्मीर में देश के विभिन्न राज्यों के हजारों लोग फंसे हुए हैं। यही नहीं जम्मू संभाग के भी कई लोग वहां पर हैं। कश्मीर के स्थायी नागरिकों के रिश्तेदार भी जम्मू व देश के अन्य राज्यों में हैं। चिंता हर जगह है। किसी का किसी से कोई भी संपर्क नहीं हो पा रहा है। पूरे बाढ़ प्रभावित कश्मीर में मोबाइल सेवा ठप पड़ी हुई है। कहीं पर भी कोई लैंडलाइन नहीं चल पा रहा है। वहीं, आलम यह है कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। कोई घाटी में दूसरी मंजिल पर है तो कोई तीसरी मंजिल पर। जिंदगी और मौत के बीच फासला बहुत कम है। इसने सबकी चिंता को बढ़ा दिया है।

ऐसे में सोशल साइट्स पर हजारों लोग संदेश लिखकर अपने परिजनों को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। अंकुर रैना ने ट्वीट किया है कि उसके माता-पिता सीआरपीएफ कैंप इंदिरा नगर के पास फंसे हैं। कृपया कोई उनकी सहायता करो, उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है।

फेसबुक पर रूचि सिंह ने लिखा है कि मेरे पिता राजबाग में फंसे हुए हैं। उनसे कैसे संपर्क करूं। एक ने लिखा है कि होटल ब्राडवे में लोग फंसे हुए हैं। कोई उन्हें बाहर निकाले। वहीं, फेसबुक पर किसी ने लिखा है कि उसका करीबी रिश्तेदार रवि राय जो कि श्रीनगर में पढ़ रहा है। राजबाग सोनावर फुटब्रिज के पास फंसा है, उससे चौबीस घंटों से संपर्क नहीं हो रहा है। प्लीज हेल्प हिम।

जम्मू से आसिफ इकबाल लिखते हैं, 'उसके परिजन पंथाचौक के पास इंदिरा नगर में फंसे हुए हैं। प्लीज उन्हें बोट दिलाओ।'

ऐसे दर्द व चिंता में डूबे लोगों के संदेशों की बाढ़ आई हुई है। हर कोई अपनों का हाल जानना चाहता है मगर कुदरत के कहर ने तबाही का ऐसा तांडव मचाया है कि हर कोई बेबस नजर आ रहा है। हालांकि राज्य सरकार ने लोगों के लिए हेल्पनंबर बनाए हैं मगर वह भी नहीं चल पा रहे हैं। उनसे भी कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। ऐसे में लोगों की चिंताएं बढ़ना स्वभाविक है।


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