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आतंक के भय पर मतदान का जोश भारी

By Edited By: Published: Fri, 18 Apr 2014 01:01 AM (IST)Updated: Fri, 18 Apr 2014 01:01 AM (IST)
आतंक के भय पर मतदान का जोश भारी

नवीन नवाज, ऊधमपुर डोडा

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पाकिस्तान की सीमा से लगभग 15 किलोमीटर दूर यह अर्जुन चक्क (हीरानगर) छोटा सा गाव वीरवार को फिर सभी के लिए दिलचस्प बना हुआ है। क्योंकि, राज्य में बहाल हो रही सामान्य स्थिति और मजबूत होते लोकतंत्र को हिलाने के मकसद के साथ सरहद पार से आए आतंकियों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन में दाखिल होकर छह पुलिसकर्मियों को मौत की नींद सुला दिया था। अब यहा फिर लोकतंत्र का इम्तिहान था और सभी को आशका थी कि 26 सिंतबर की काली सुबह का साया 17 अप्रैल के सूरज पर भी रहेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

पुलिस स्टेशन से मात्र 100 मीटर की दूरी पर आम के पेड़ों के झुरमुट में बने मतदान केंद्र के बाहरी लगी महिलाओं और पुरुषों की लंबी कतार और अंदर से बाहर आकर उंगली दिखाते लोग कह रहे थे कि यह स्याही नहीं बल्कि हमारा जवाब है, उन लोगों को जिन्हें हमारा लोकतंत्र रास नहीं आता। मतदान केंद्र के बाहर सड़क के मुहाने पर बैठे बैसाखी राम ने कहा कि हम लोग हमेशा सरहद पार के अपने पड़ोसी के लिए खटकते रहते हैं। वर्ष 2002 में भी चुनाव के दिन ही यहा वहा से आए आतंकियों ने हमला किया था। छह माह पहले यहा सामने थाने में उन्होंने गोलिया बरसाई थीं। हमें लगता है कि वह नहीं चाहता कि यहा अमन हो, लोकतंत्र मजबूत हो। हमें उसकी गोलियों का डर नहीं है, डर है कहीं हमारा लोकतंत्र कमजोर न हो जाए। इसलिए हम यहा आज वोट डालने आए हैं।

मतदान केंद्र से निकल रही इच्छा देवी ने कहा कि मैं तो यह नहीं बता सकती कि किसके लिए बटन दबाया। यह जरूर कहूंगी कि कुछ ऐसा बंदोबस्त हो कि सीमा पार से आतंकी न आएं। हमारा घर थाने के सामने ही है। हमें पता है कि उस दिन क्या हुआ था। अगर सरकार मजबूत हुई तो दुश्मन हमारे घर नहीं आएगा। लोगों में मतदान के लिए जोश का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मतदान केंद्र में 1083 वोटरों में से 760 मतदाता दोपहर 12 बजे तक अपनी उंगलियों पर स्याही लगा चुके थे।

अर्जुन चक्क से पाच किलोमीटर नीचे हीरानगर हायर सेकेंडरी में भी विभिन्न प्रत्याशियों के समर्थक मतदाता जोश में थे। पीपल की छाव में बैठे सोम ने कहा कि हमें पता है कि केंद्र में क्या चाहिए, बस उसके लिए वोट डालिए। हमारा यह वोट उन लोगों को हमारा जवाब है, जो अपनी गोलियों की आवाज से हमारी आवाज को दबाना चाहते हैं। अध्यापिका नीरा ने कहा कि यह वोट हमारी ताकत है और यही लोकतंत्र की जान है।

शून्य रेखा के साथ सटे लौंडी में बीएसएफ की अग्रिम चौकी के पास बने मतदान केंद्र में 1052 वोटरों में से 750 दोपहर 12 बजे तक मतदान कर चुके थे।

वहा मौजूद रामकुमार ने कहा कि न हमें पाकिस्तानी गोलियों का डर है, न आतंकियों के आने का खौफ। बस आज वोट डालना है और अपनी तकदीर बदलनी है।

आतंकवादग्रस्त डोडा और रामबन के पहाड़ों में कश्मीर से आ रही चुनाव बहिष्कार की हवा को पीरपंचाल के पार तक सीमित रखने का जज्बा। पीरपंचाल की तलहट्टी में बसे बनिहाल कस्बे के हायर सेकेंडरी स्कूल में सुबह से ही मतदान करने वालों की कतार लग चुकी थी। अपनी वोटर स्लिप को हाथ में थामे फैज उल नबी ने कहा कि भई साहब हमें यहा अफगानिस्तान नहीं बनाना है और न यहा तालिबान का राज चाहिए। हमें अपना राज चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि हम वोट डालें। उसके पास ही खड़ी आयशा ने कहा कि मैंने आतंकियों के कहर को झेला है, मेरा स्कूल जाना बंद हो गया था। डरती हूं कि दोबारा ऐसा न हो जाए। मैं दूसरी बार वोट डालने आई हूं। पूरी बनिहाल तहसील में 51 फीसद मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है, जो अभी तक एक रिकॉर्ड है। इसी क्षेत्र में दरिया चिनाब के पार गूल में मतदान केंद्र के बाहर तनवीर मलिक ने कहा कि यह सही है कि यहा आतंकवाद है। आतंकी अपने तरीके से लोगों को मतदान केंद्र तक आने से रोक रहे हैं। लेकिन हमें उनकी नहीं अपनी हुकूमत चाहिए, इसलिए यहा आए हैं।

रियासी के माहौर में स्कूल परिसर में स्थित मतदान केंद्र में लगी कतार में खड़ी जुलेखा से जब पूछा कि वह क्या सोचकर मतदान करने आई है, उसे आतंकियों का डर नहीं। उसने जवाब में कहा कि वहा अंस नाले के पार हम रहते थे। आतंकियों के डर से दस साल पहले हम यहा आकर बसे। वह तो यही चाहते हैं कि यहा कोई वोट न डाले, अगर उनकी बात मान ली तो उनका ही हौसला बढ़ेगा। उनके हौसले को तोड़ने के लिए यहा वोट के लिए बटन दबाना जरूरी है।


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