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पहल करो, पहला कदम बढ़ाओ

“रिएक्टिविस्ट” (हादसे के बाद कदम उठाने वाले) की जगह “प्री-एक्टिविस्ट” (हादसे से पहले सक्रिय होने वाले) बन सकें तो हम और आप एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं।

By Tilak RajEdited By: Published: Tue, 21 Feb 2017 12:30 PM (IST)Updated: Fri, 03 Mar 2017 03:50 PM (IST)
पहल करो, पहला कदम बढ़ाओ
पहल करो, पहला कदम बढ़ाओ

हम अपने आस-पास के लोगों को महज कोसना नहीं चाहते, लेकिन हाल ही में हमारे समाज को शर्मसार करने वाली एक घटना सामने आई। पिछले दिनों कर्नाटक के कोप्‍पल में एक सड़क दुर्घटना हुई, जिसमें एक शख्‍स बुरी तरह घायल हो गया। लगभग आधे घंटे तक ये शख्‍स सड़क पर पड़ा रहा, लेकिन कोई इसकी मदद के लिए आगे नहीं आया। कुछ लोगों ने इसके फोटो और वीडियो बनाना शुरू कर दिए। आधे घंटे बाद इस शख्‍स को अस्‍पताल पहुंचाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अगर लोग समय रहते इस शख्‍स को अस्‍पताल पहुंचा देते, तो इसकी जान बच सकती थी।

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हादसा हो जाने के बाद लोगों के रिएक्ट करने का यह एक और ताज़ा उदाहरण था। हफ्ते भर पहले महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के पंगारमल गांव में लोगों ने स्थानीय चुनाव का पूर्ण बहिष्कार कर दिया। बीती 12 फरवरी को एक उम्मीदवार के यहां रात्रिभोज में परोसी गई जहरीली शराब के कारण हुई सात मौतों के चलते लोगों ने यह कदम उठाया। सहायक चुनाव अधिकारी के समझाए जाने के बाद भी गांव वाले मतदान के लिए तैयार नहीं हुए। इसी कारण ज़िला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में यहां एक भी वोट नहीं पड़ा। अगर गांव के समझदार लोग चुनाव की जगह चुनावी प्रलोभन का बहिष्कार करते तो सात ज़िन्दगियों के साथ ही लोकतंत्र की भी रक्षा होती।
दरअसल, दुर्घटना हो जाने के बाद रिएक्ट करने के बजाय ऐसा होने से पहले सक्रिय हो जाएं तो कई हादसे टल सकते हैं और लोगों की जान बच सकती है। हमें सतर्कता बरतने की आदत डालनी होगी ताकि हम हादसे होने से पहले कदम उठाएं, कुछ गलत होने की आशंका हो तो आवाज़ उठाएं, खुद भी जागें और लोगों को जगाएं।
आपाधापी की इस जिंदगी में अक्सर कई बार कुछ समस्याओ का अंदेशा बना रहता है। हम उनकी आहट भी महसूस करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो समस्या को बनने, बढ़ने और अपने जीवन पर हावी होने नहीं देते। मुंबई के उपनगर मीरा रोड में रह रहे 80 बरस के बुजुर्ग आबिद सूरती ने ऐसी ही मिसाल पेश की है। गरमी आने से पहले पानी की कमी के कारण बदहाली न झेलनी पड़े, इसके लिए पहले ही उन्होंने मीरा रोड क्षेत्र के 1666 घरों में जाकर चू रहे नलों की पड़ताल की। फिर एक प्लंबर की सहायता से 414 नलों को ठीक करवाया और करीब 4.14 लाख लीटर पानी फालतू बहने से बचाया। अब वे इसी तरह पानी बचाने के लिए पूरे देश के शहरों को प्रेरित कर रहे हैं।
सूरती ने साबित कर दिया कि अगर थोड़ी-सी कोशिश की जाए, तो समस्‍याओं के सामने आने से पहले ही उनसे निबटने का इंतज़ाम किया जा सकता है।
भारत में पीने के पानी की समस्या को लेकर आ चुकी रिपोर्ट्स के मुताबिक देश की नदियों का 75 फीसदी पानी पीने योग्य नहीं है। दूसरी अहम् बात यह है कि 21 फीसदी संक्रामक बीमारियों का सीधा संबंध प्रदूषित पानी से है। जाहिर है, नदियों को अब हम इससे ज्यादा खराब होने नहीं दे सकते।
बदलाव तो हर कोई चाहता है, लेकिन उस बदलाव के लिए अगर कोई पहल करे यानी अपना पहला कदम उठाए तो बात बनने लगती है। जीवनदायिनी यमुना रिवर से “सीवर” न बन जाए, इसके लिए दिल्ली के महेंद्र मित्तल ने अपने साथी व्यापारी बंधुओं को साथ लेकर भजन-कीर्तन-पूजन के ज़रिये एक जागरूकता अभियान शुरू किया, पूजन सामग्री यमुना में ना बहाने का आग्रह किया और इसका आध्यात्मिक महत्व स्मरण कराया।
दिल्‍ली में 1 करोड़ से ज़्यादा लोग रहते हैं, अगर इनमें से सिर्फ 10 फीसदी लोग भी यमुना की सफाई के लिए खड़े हो जाएं, तो इस नदी के आसपास का नजारा चंद दिनों में बदल जाएगा। हरियाणा के कारखानों की गंदगी यमुना में ना छोड़ी जाए तो लंदन की थेम्स नदी की ही तरह दिल्ली में यमुना के तट पर वजीराबाद से लेकर ओखला तक शानदार लैंडस्केप, बगीचे होंगे, नीला जल कल-कल कर बहेगा, पक्षियों और मछलियों की रिहाइश होगी। याद करें, 10 अप्रैल 2001 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च 2003 तक दिल्ली में यमुना की न्यूनतम जल गुणवत्ता प्राप्त कर ली जानी चाहिए, ताकि यमुना को ‘मैली’ ना कहा जा सके। मैली नदियां और सूखते स्रोत देश में ही नहीं दुनिया भर में पानी की भीषण कमी का कारण बनेंगे। आपने वह भविष्यवाणी तो सुनी ही होगी कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़ा जाएगा। क्यों ना हम अपनी छोटी-बड़ी कोशिशों से इसे रोकने की कोशिश करें।
समस्‍या सुलझाएं, उसे अनदेखा न करें। मसलन, घर के पास की स्‍ट्रीट लाइट खराब है और पूरी गली में अंधेरा है, तो कोई दुर्घटना होने से पहले बिजली विभाग में इसकी शिकायत करें। सड़क के किनारे गंदगी-मलबे के ढेर लगे हुए हैं, तो संबंधित विभाग को बताएं। पार्कों-मैदानों पर टेंट वालों का कब्ज़ा होने लगे, बच्‍चे मजबूरन सड़क को खेल का मैदान बनाएं तो पहल करें, लोगों को जोड़ें और बच्चों की मदद करें।
“रिएक्टिविस्ट” (हादसे के बाद कदम उठाने वाले) की जगह “प्री-एक्टिविस्ट” (हादसे से पहले सक्रिय होने वाले) बन सकें तो हम और आप एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। किसी दुर्घटना की आशंका है, तो हादसे के बाद सक्रिय होने की आदत से निजात पाओ। शुरू में थोड़ी तकलीफ होगी, लेकिन समस्या का समाधान होगा, यकीन मानो। अलार्म बजने से पहले जागो रे...


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