स्मार्टफोन के बढ़ रहे प्रभाव में टूट रही हैं रिश्तों की डोर
शहरों में बढ़ रही है इस तरह की समस्याएं, आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से लगी रही है अधिक आकर्षक...
शहर की एक बैंककर्मी नताशा (बदला हुआ नाम) व आइटी इंजीनियर नितिन की डेढ़ साल पहले शादी हुई थी। शादी के कुछ समय बाद ही दोनों एक ही शहर में अलग-अलग रहने लगे। माता-पिता को पता चला तो उन्होंने उन दोनों के बीच की समस्याएं जानने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ ठीक होने के बाद भी वे साथ नहीं रहना चाहते। ऐसे में माता-पिता उन्हें साइकोलॉजिस्ट के पास ले गए। वहां पता चला कि दोनों अकेले रहना चाहते हैं क्योंकि वे अपने जीवन में दखल नहीं चाहते। साइकोलॉजिस्ट ने जब उनकी पूरी दिनचर्या जानी तो पता चला कि वे प्रतिदिन तकरीबन आठ घंटे फोन पर रहते थे। उन्हें अपने वर्चुअल सोशल लाइफ इतनी भा रही थी कि असल जिंदगी के रिश्तों को उसमें दखल मानते थे। यही कारण है कि दोनों के बीच भावनात्मक लगाव की जगह दूरियां बढ़ती गई। यह बातें गुरुग्राम की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट व काउंसलर निधि ने बताईं। उनके मुताबिक यह किस्सा केवल किसी एक जोड़े का नहीं है बल्कि कहीं न कहीं किसी हद तक हर तीसरा युवा जोड़ा इस तरह की समस्या से जूझ रहा है।
वर्चुअल एडिक्शन है वजह: साइकोलॉजिस्ट व फोर्टिस हेल्थकेयर के निदेशक समीर पारेख के मुताबिक रिश्तों के
टूटने की वजह यह है कि लोगों को फोन की लत लग जाती है। एक ऐसी स्थिति आ जाती है कि फोन रख भी दिया जाए तो भी दिमाग वहीं रहता है और हाथ खुद बखुद फोन की तरफ पहुंच जाते हैं। यह स्थिति बेहद खतरनाक साबित हो रही है। लोग फोन के आगे किसी रिश्ते नाते को अहमियत नहीं दे पाता। दिन भर के काम के तनाव के बाद फोन के गेम व सोशल साइट पर सुकून की तलाश करते हैं। उनकी यह तलाश कुछ हद तक पूरी भी होती है
लेकिन उसके प्रभाव में नाते रिश्ते गौण होते जा रहे हैं।
हर आयु वर्ग हो रहा है प्रभावित
साइकोलॉजिस्ट सिलोनी वर्मा के मुताबिक उनके पास इस तरह की समस्याएं लेकर लोग आ रहे हैं। इसमें केवल युवा ही नहीं बल्कि बड़ी उम्र के लोगों के साथ भी इस तरह की समस्याएं आ रही हैं। केवल पुरुष ही नहीं, महिलाओं में भी स्मार्ट फोन व सोशल साइट की लत देखने को मिल रही है। ऐसे में बात रिश्तों के बिखराव तक पहुंच रही है जो कि समाज के लिए एक चेतावनी है।
खत्म हो रही हैं भावनाएं
दिल्ली की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट पूनम के मुताबिक स्मार्ट फोन का जुनून लोगों पर इस कदर सवार हुआ है कि लोगों में से वह भावनाएं व यहां तक कि विपरीरित लिंग के बीच आकर्षण तक खत्म होता जा रहा है। इस लत के चलते इमोशंस को जन्म देने वाले हार्मोंस की मात्रा भी कम हुई है। ऐसे में लोगों को आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से अधिक आकर्षक लग रही है।
लोगों का समय रिश्तों की जगह फोन पर बीत रहा है। इससे भटकाव हो रहा है व रिश्ते टूट रहे हैं। लोग पास बैठकर बात करने की बजाए मैसेज पर बात करना ज्यादा पसंद करते हैं। लोगों को स्मार्ट फोन का कम से कम उपयोग करना चाहिए।
-डा. समीर पारेख, निदेशक, फोर्टिस हेल्थकेयर
युवा ही नहीं, बड़ी उम्र के लोगों की शादियां भी खतरे में पड़ रही हैं। साथ रहने में बंदिशें लगती हैं। रिश्तों में प्रेमभाव केवल सोशल साइट व एप तक रह गया है। सोशल मीडिया पर अंकुश लगाना पड़ेगा। सोशल मीडिया के साइकोलॉजिकल दुष्प्रभावों के चलते रिश्तों में दूरियां इस कदर बढ़ रही हैं।
-सिलोनी वर्मा, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट
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