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जानिए कितनी जरूरी है पैरेंट्स मैनेजमेंट?

पढ़ाई के नए सेशन शुरू होने का मौसम है। स्कूलों की परीक्षाएं हो चुकी हैं तो कालेजों की भी खत्म होने वाली हैं। रिजल्ट्स का सिलसिला शुरू होते ही किशोरों द्वारा आत्महत्या की खबरें आने लगती हैं। भले ही केंद्रीय सरकार ने ग्रेडिंग सिस्टम करके प्रेशर कुछ कम करने की कोशिश की है, लेकिन परिव

By Edited By: Published: Mon, 14 Apr 2014 11:10 AM (IST)Updated: Mon, 14 Apr 2014 11:10 AM (IST)
जानिए कितनी जरूरी है पैरेंट्स मैनेजमेंट?

पढ़ाई के नए सेशन शुरू होने का मौसम है। स्कूलों की परीक्षाएं हो चुकी हैं तो कालेजों की भी खत्म होने वाली हैं। रिजल्ट्स का सिलसिला शुरू होते ही किशोरों द्वारा आत्महत्या की खबरें आने लगती हैं। भले ही केंद्रीय सरकार ने ग्रेडिंग सिस्टम करके प्रेशर कुछ कम करने की कोशिश की है, लेकिन परिवार तथा पीयर ग्रुप के प्रेशर से निजात पाना शायद आसान नहीं है। यहां जरूरत पेरैंट्स को फेल्योर मैनेजमेंट सीखने की है, ताकि वे कहीं अनजाने में अपने शब्द बाणों से बच्चों को फेल होने पर आत्महत्या जैसे गंभीर कदम उठाने के लिए न उकसा दें। आइए नजर डालें हाल ही की कुछ घटनाओं पर..

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जीवन है तो सब कुछ है

जालंधर के दोआबा कालेज की उर्मिला पढ़ाई में अच्छी नहीं थी, लेकिन परिवार की अपेक्षाएं बड़ी थीं। वे चाहते थे कि वह बीसीए करे। अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उर्मिला ने दोआबा कालेज में बीसीए में एडमिशन लिया, पर अच्छे अंक न ला पाने का मलाल उसे इस कदर सताने लगा कि उसने जीवनलीला समाप्त करने का बड़ा फैसला ले लिया। एक शाम घर के पास वाली रेल की पटरी पर जाकर लेट गई। उसे बीसीए की पढ़ाई से आसान ट्रेन से कट मरना लगा।

उसने गत वर्ष ही पुलिस डीएवी स्कूल से बारहवीं कक्षा पास की थी। इसी स्कूल की प्रिंसिपल व राष्ट्रीय अवार्ड विजेता डॉ. रश्मि विज, जिन्होंने साइकॉलजी में पीएचडी की है, का कहना है कि कई बार माता-पिता अपनी आकांक्षाएं अपने बच्चों के जरिए पूरी करना चाहते हैं। वे अपनी इच्छाओं की ओर अधिक और बच्चे की काबिलियत की तरफ कम ध्यान देते हैं।

बच्चे को यह जताना कि कठिनाइयों के बावजूद उसकी पढ़ाई पर पैसा खर्च किया जा रहा है या उसे बारबार अच्छे अंक न ला पाने पर शर्मसार करना घातक हो सकता है। बच्चा जो पहले ही अच्छे अंक न ला पाने के कारण दुखी हो, प्रेशर में हो, वह फैमिली के इस बर्ताव को सह पाएगा या नहीं, इस बारे में माता-पिता को जरूर सोचना चाहिए। वे सफलता को केवल अंकों से ही क्यों आंकते हैं? केवल पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने वाले बच्चे को ही क्यों अच्छा समझा जाता है?

सफलता का एक ही रूप नहीं होता, उसके अनेक रूप हैं। अच्छा खेलने वाला, अच्छी पेंटिंग करने वाला या अन्य किसी भी काम में अच्छा प्रर्दशन भी तो अपने आपमें सफलता है। बच्चों की उम्र के साथ-साथ उनके सपने भी बड़े होते हैं। उनके सपनों को समझने व पूरा करने में माता-पिता व टीचर्स को सहयोग करना चाहिए। वह जिस फील्ड में पढ़ाई करना चाहता है, उसे वो करने दें। नौकरी और बड़ी तनख्वाह के बारे में अभी न सोचें, क्योंकि जीवन है तो सब कुछ है।

पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ाएं

पंजाब के एक पूर्व मंत्री की दोहती रितिका 9वीं कक्षा में पढ़ती थी। अच्छे अंक न आने की वजह से उसने फंदा लगाकर दुनिया ही छोड़ दी। लुधियाना निवासी मात्र 14 साल की इस बच्ची के नाना का कहना है कि आजकल प्रतियोगिता के दौर में अभिभावकों को अपने बच्चों पर परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहिए, क्योंकि दबाव में आकर गलत रास्ता अपनाने का डर रहता है। उनका कहना है कि अभिभावकों को परीक्षा के दिनों में व परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद बच्चों को प्यार से हैंडल करना चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए कि अगर अच्छे अंक आएंगे तो आपका भविष्य उज्ज्वल बनेगा। बच्चे की शिक्षा जरूरी है, लेकिन उस पर दबाव नहीं। बच्चों में पढ़ाई के प्रति अधिक से अधिक रुचि प्यार से पैदा करनी चाहिए। ताकि बच्चा पढ़-लिखकर अच्छे अंक लेकर पास हो सके।

पैरेंट्स सीखें मैनेजमेंट

साइकोलॉजिस्ट पल्लवी खन्ना कई स्कूलों व कालेजों में काउंसलिंग करती हैं। वह अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहती हैं कि बचपन से ही असफलता को एक हौवा बना दिया जाता है। अधिकांश अभिभावक न तो स्वयं इस बात को समझते हैं और न ही कभी अपने बच्चों को समझाते हैं कि असफलता के सकारात्मक पहलू भी हो सकते हैं। असफलता के कारण को ढूंढ़कर यदि उस कमी को दूर करने की पूरी लगन से कोशिश की जाए तो सफलता जरूर मिलती है। अनेक स्कूलों, कालेजों ने अब बच्चों की काउंसलिंग के लिए विशेष प्रबंध करने शुरू किए हैं, क्योंकि बच्चों को ये काउंसलिंग घर पर पैरेंट्स से नहीं मिल रही थी। अक्सर बच्चे दिल की बात माता-पिता से नहीं कह पाते, क्योंकि वे उनसे डरते हैं, पर काउंसलर से कहकर दिल हल्का कर लेते हैं। उनके डिप्रेशन के लक्षणों को अभिभावकों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यदि बच्चा गुमसुम है, परेशान है, कुछ छिपाने की कोशिश कर रहा है तो उसे डांट-डपट कर नहीं प्यार से पूछें और उसकी समस्या का हल निकालें। उसकी रुचि व काबिलियत के अनुसार सब्जेक्ट्स का चयन करें। पहले तो लगन से पढ़ाई करने के लिए ही प्रेरित करें, लेकिन यदि अंक अच्छे न आएं और किसी विशेष विषय या कालेज में सीट न मिल पाए तो उसे हताश न होने दें, बल्कि आत्मसम्मान के साथ कोई अन्य विषय या वोकेशनल कोर्स आदि के बारे में विचार करें। आज मात्र डॉक्टर या इंजीनियर बनना जरूरी नहीं, बल्कि अनेकानेक क्षेत्र बाहें पसारे युवाओं को बुला रहे हैं।

(वंदना वालिया बाली, इनपुट लुधियाना से बिंदु उप्पल)


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