घर को सजाते समय क्या आपसे भी होती हैं ये गलतियां?
कई बार घर की साज-सज्जा में कुछ कमी रह जाती है या थोड़ी सी लापरवाही से पूरा डेकोर ही बिगड़ जाता है।
घर को सजाने की चाह में कई बार रचनात्मकता अपना कमाल दिखाती है मगर कभी-कभी गलतियां भी हो जाती हैं। फ्लैट छोटा हो और फर्नीचर बड़ा, पेंडेंट लाइट्स ज्य़ादा ऊपर हों, रग्स का सही चुनाव न किया जाए तो घर बेमेल सा नजर आने लगता है। थोड़ी समझदारी बरतें तो इन गलतियों से बचा जा सकता है या इन्हें सुधारा जा सकता है।
परदे
डेकोरेशन का नियम कहता है कि पर्दे फ्लोर लेंथ से लगभग एक इंच कम हों। कई बार ये या तो फर्श को छूने लगते हैं या फिर कुछ ज्य़ादा ही छोटे हो जाते हैं। डेकोर की यह आम समस्या है।
टिप
-बेहतर होगा कि पहले दरवाजे या खिड़कियों की नाप सही ढंग से लें। अगर फैब्रिक सिल्क का नहीं है तो हाइट थोड़ी ज्यादा रखें क्योंकि कई बार कॉटन फैब्रिक धोने के बाद सिकुड़ जाता है। वैसे इस समस्या से बचने के लिए इन्हें ड्राईक्लीन कराएं या फिर घर में धोने के बाद अच्छी तरह इस्तरी करें।
फोटो फ्रेम्स
कई बार फैमिली फोटो फ्रेम्स या पेंटिंग्स की हाइट इतनी ऊंची हो जाती है कि उनकी डिटेलिंग समझ नहीं आती। ग्रुप में लगे फ्रेम्स अच्छे जरूर लगते हैं लेकिन इतने भी नहीं कि पूरी दीवार पर यही नजर आने लगें।
टिप
-अगर घर में आर्ट गैलरी न खोलना चाहती हों तो फ्रेम्स को ज्यादा हाइट पर न लगाएं। इन्हें फर्नीचर से 10-12 इंच या फ्लोर से लगभग 5 फिट ऊपर लगाएं ताकि ये आसानी से नजर आ सकेें। व्यावहारिक सुझाव यह है कि फ्रेम्स इतने ऊपर हों कि सामान्य हाइट वाला व्यक्ति भी इन्हें देख सके और लोगों को अपनी गर्दन को स्ट्रेच करके इन्हें न देखना पड़े।
कार्बन कॉपी
सभी लोग किसी न किसी इंटीरियर थीम से प्रेरित होते हैं। दोस्तों, कलीग्स के घरों के अलावा फिल्मों-टीवी सीरियल्स और पत्रिकाओं में प्रकाशित घर भी उन्हें प्रेरित करते हैं। कई बार वे वैसी ही सजावट अपने घर में चाहते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि अपने घर को दूसरे के घरों की कार्बन कॉपी बना दें। घर में अपनी निजी पसंद, शौक, व्यक्तित्व, प्रोफेशन और स्टाइल की झलक भी मिलनी चाहिए।
टिप
-किसी से प्रेरित होने से पहले सोचें कि क्या वह खास पैटर्न, फर्नीचर, फैब्रिक या वॉल कलर आपके घर के साइज, जरूरतों और उसमें रहने वालों की पसंद के अनुरूप है? घर में अपने व्यक्तित्व और रचनात्मकता की छाप होनी चाहिए। यह बात जरूर ध्यान में रखें कि घर रहने के लिए होता है। उसे इतना न सजाएं कि वह फाइव स्टार होटल में तब्दील हो जाए।
लाइटिंग
अमूमन घरों में सीलिंग या ओवरहेड लाइटिंग की व्यवस्था होती है। यूं भी फ्लैट सिस्टम में बिल्डर जितना देता है, उतने में ही संतुष्ट होना पड़ता है मगर कई बार लाइटिंग की अपर्याप्त व्यवस्था घर को नीरस या उदासीन बना देती है। इसलिए सीलिंग लाइट्स के अलावा भी घर में लाइटिंग की उचित व्यवस्था करें।
टिप
-थोड़ा सा मेकओवर घर को जीवंत और ऊर्जा से भरा हुआ बना सकता है। घर की लाइटिंग में फेरबदल करें। फॉल्स सीलिंग के अलावा फ्लोर लैंप्स, पेंडेंट लाइट्स, टास्क लाइटिंग और ओवरहेड लाइटिंग लगवाएं। जिन आर्ट पीसेज या पेंटिंग्स को हाइलाइट करना चाहते हैं, उनमें हाइलाइटर लगवाएं।
दीवार से सटे फर्नीचर
स्पेस मैनेजमेंट कहें या सजावट का पारंपरिक तरीका, अमूमन घरों में फर्नीचर को दीवार से सटाने का नियम चला आ रहा है। कई घरों में तो सेंटर टेबल भी सेंटर के बजाय दीवार से सटा कर रखी जाती है। इस फ्लोर प्लैन में थोड़ा सा बदलाव जरूरी है।
टिप
-भले ही घर छोटा हो, अपने सारे फर्नीचर्स दीवार से सटा कर न रखें। दीवार से 2-3 इंच दूरी पर सामान रखेंगे तो न सिर्फ जगह ज्यादा खुली दिखेगी बल्कि फर्नीचर और दीवार की खूबसूरती भी निखर कर आएगी।
ड्रॉइंग रूम
अमूमन घरों में लिविंग स्पेस या ड्रॉइंग रूम के डेकोर पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। कारण यह है कि मेहमानों का स्वागत यहीं होता है। इस कारण कई बार ड्रॉइंग रूम में सारी सुंदर कलाकृतियां, देश-विदेश से खरीदी गई पेंटिंग्स या आर्ट पीसेज, कार्पेट्स, रग्स, लैंप्स, अवॉर्ड्स गिफ्ट्स सजा दिए जाते हैं। छोटे से स्पेस में इतने फोकल पॉइंट्स न तैयार करें कि नजर कहीं भी ठहर न पाए।
टिप
-जरूरी नहीं कि सारे फोटो फ्रेम्स ड्रॉइंग रूम में लगा दें, सीढिय़ों के नीचे या पैसेज में भी इन्हें लगवा सकते हैं। अवॉर्ड्स को शोकेस करना चाहते हैं तो बार को डाइनिंग एरिया या कमरे के किसी दूसरे कॉर्नर पर शिफ्ट करें।
इंदिरा राठौर