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शांति स्थान नहीं मन को बदलने से मिलती है : स्वामी अतुल

संवाद सहयोगी, ऊना : ज्वार में श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन स्वामी अतुल कृष्ण महाराज ने प्रवचनों से

By Edited By: Published: Mon, 25 May 2015 09:45 PM (IST)Updated: Mon, 25 May 2015 09:45 PM (IST)
शांति स्थान नहीं मन को बदलने से मिलती है : स्वामी अतुल

संवाद सहयोगी, ऊना : ज्वार में श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन स्वामी अतुल कृष्ण महाराज ने प्रवचनों से श्रद्धालुओं को निहाल किया। उन्होंने कहा कि ईश्वर की भक्ति सर्वोत्तम पुरुषार्थ है। भक्तिमान प्राणी सर्वत्र सुखी रहता है। वास्तव में प्रभु की भक्ति एक ऐसा रसायन है जो जीवन के दोषों को मिटा कर मनुष्य को देवत्व प्रदान कर देता है। अपनी तृप्ति तो ज्ञान के एक घूंट से ही हो सकती है। जैसे कुएं के सारे जल की आवश्यकता नहीं, प्यास तो थोड़े से जल में ही बुझ जाती है। भगवान को अपने साथ सदैव महसूस करना, यह वेदांत का सार है। परमात्मा को भूलने में ही दुख और सदैव स्मरण रखने में ही सुख है। उन्होंने कहा कि हमें संसार में कर्म तो करना है पर कर्म फल में असक्त नहीं होना है। भगवान की प्राप्ति का साधना करना चाहिए संसार का नहीं। संसार की वस्तुएं भगवान की चाह में स्वत: ही आ मिलती हैं। हम प्रभु की कृपा प्राप्त करने के लिए उन्हीं के बन जाएं। सदैव आनंद, प्रसन्नता एवं माधुर्य से भरे रहना ईश्वर की सर्वोत्तम भक्ति है। जीवन में शांति स्थान बदलने से नहीं बल्कि मन को बदलने से प्राप्त होती है। इस अवसर पर प्रकाश चंद, रछपाल ¨सह, कुलदीप ¨सह, ओम दत्त शर्मा, रा¨जदर ¨सह, ज¨तदर ¨सह, सुनील कुमार, शिव कुमार, राजेश कुमार, मुकेश कुमार व ऊमा शर्मा आदि मौजूद रहे।


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