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दुआ करो! यूं ही रहे मौसम

संवाद सहयोगी, ¨चतपूर्णी : मार्च खत्म हो गया मगर मौसम में ठंडक बरकरार है। इसी का परिणाम है कि ¨चतपूर्

By Edited By: Published: Tue, 31 Mar 2015 05:03 PM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2015 05:03 PM (IST)
दुआ करो! यूं ही रहे मौसम

संवाद सहयोगी, ¨चतपूर्णी : मार्च खत्म हो गया मगर मौसम में ठंडक बरकरार है। इसी का परिणाम है कि ¨चतपूर्णी क्षेत्र के जंगल इस वर्ष अप्रैल शुरू होने तक पूरी तरह सुरक्षित हैं। अभी तक अग्निकांड का कोई मामला सामने नहीं आया है।

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प्रकृति को धन्यवाद इसलिए भी देना जरूरी है क्योंकि गत वर्षो में मार्च में चिंतपूर्णी क्षेत्र के जंगल धू-धूकर जलते रहे हैं। असंख्य वन्य प्राणियों के साथ लाखों रुपये की वन संपदा हर वर्ष राख होती रही है। हालांकि पिछले वर्ष भी अप्रैल के दूसरे पखवाड़े तक मौसम में ठंडक बनी रही थी लेकिन बाद में जंगल जलने लगे थे। वन विभाग व मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार इस बार मौसम की मेहरबानी के कारण ही जंगलों में आग नहीं लगी है। वन विभाग के प्रयास भी इस मामले में कुछ हद तक कारगर सिद्ध हुए हैं। ऊना जिला में सबसे ज्यादा आग चीड़ के जंगलों में लगती है। जिला की शिवालिक रेंज की पहाड़ियों से सटे ¨चतपूर्णी, गगरेट व कुटलैहड़ का वन्य क्षेत्र चीड़ के जंगलों के ²ष्टिगत अति संवोदनशील माना जाता है। वर्षों से लगातार मार्च में में पारा चढ़ते ही ये जंगल राख होना शुरू हो जाते थे। वर्ष 2012 से 2014 के बीच भी जंगलों में आग लगी लेकिन इन तीन वर्षो में तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव आता रहा। यही कारण है कि अप्रैल के दूसरे पखवाड़े व मई में ही वन्य क्षेत्र आग की भेंट चढ़ा। ये आंकड़े सिर्फ सरकारी जंगलों के हैं। ऐसे में इस बार किसी भी वन्य क्षेत्र में आग न लगना अब तक की बड़ी उपलब्धि है। मौसम विभाग के अनुसार मार्च में बेशक अधिकतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था मगर आम तौर पर ठंड रही। मार्च के आखिरी सप्ताह के पांच दिनों को छोड़ दिया जाए तो मौसम में गर्माहट का अहसास नहीं हुआ। वहीं, पूर्व के वर्षो में अधिकतम तापमान के कारण भी अग्निकांड होते रहे हैं।

मार्च में रफ्तार नहीं पकड़ पाया तापमान

मौसम विभाग के समन्वयक के मुताबिक वर्ष 2008 में मार्च में अधिकतम तापमान 36.2, 2009 में 33.6, 2010 में 39.4 व 2011 में 34.8 डिग्री सेल्सियस जा पहुंचा था। इस बार फरवरी व मार्च तक बारिश होती रही। इस कारण तापमान मार्च में एकदम से रफ्तार नहीं पकड़ पाया।

जंगल को बचाने के लिए ढूंढे सार्थक उपाय

वन विभाग ने इस बार भी जंगलों को आग से बचाने के लिए सार्थक उपाय ढूंढे हैं। जंगलों की सुरक्षा के लिए विभाग प्रयासरत रहेगा।

जेआर कौंडल, सहायक वन अधिकारी, भरवाई

वर्ष आग के मामले क्षेत्र जला

2008 54 984.4 एकड़

2009 71 910.52 हेक्टेयर

2010 37 577.19 हेक्टेयर

2011 चार 29 हेक्टेयर

(मार्च में चिंतपूर्णी के जंगलों में लगी आग)


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