हार गई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता
संवाद सहयोगी, दौलतपुर चौक : सामाजिक संवेदनाओं पर व्यवस्थागत खामी कैसे हावी होती है, इसकी बानगी यहां देखिए.. मर्जी से शादी करने पर सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रही विकास खंड गगरेट के चलेट गांव की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को मर्जी से शादी करने की एक और कीमत चुकानी पड़ी है।
पिछले सात महीने से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के सामाजिक बहिष्कार के कारण इसके असर से आंगनबाड़ी केंद्र को बचाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को उस आंगनबाड़ी केंद्र से शिफ्ट कर बाल विकास परियोजना के अधिकारियों ने इसका तोड़ निकाला है। उसे मर्जी से शादी करने की जो सजा ग्रामीण दिलाना चाहते थे, उसमें वे कामयाब हो गए हैं। इस फैसले से कई सवाल भी पैदा हो गए हैं। क्या इस विवाद का तबादले के अलावा कोई हल नहीं निकाला जा सकता था? क्या पंचायत के आदेश को गलत नहीं ठहराया जा सकता था? क्या कानून के आगे भी देश में कुछ ताकतों का प्रभाव है? ऐसे न जाने कितने सवाल अब उठने लगे हैं। एक तरह से देखा जाए तो इस मामले में अपने ही नियमों व कानून से समाज को चलाने वालों की फिर जीत हुई है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के सामाजिक बहिष्कार के मामले को दैनिक जागरण द्वारा प्रमुखता से उठाने के बाद बेशक समेकित बाल विकास परियोजना अधिकारी हरकत में आए लेकिन मामले की जांच कर रहे अधिकारी भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ न्याय नहीं कर पाए। सोमवार को समेकित बाल विकास परियोजना अधिकारी रंजीत सिंह मामले की जांच करने के लिए चलेट गांव पहुंचे थे। वहां उन्होंने गांववासियों से इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की। पिछले सात महीने से अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र न भेजने का निर्णय लेने वाले गांववासी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रहते अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र भेजने पर किसी भी सूरत में राजी नहीं हुए। गांववासी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के गांव से बाहर तबादले पर अड़े हुए थे। गांववासियों ने दो टूक कहा कि अगर कुछ दिन बाद आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को दोबारा यहां तैनाती दी गई तो फिर वे अपने बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र भेजना बंद कर देंगे। समेकित बाल विकास परियोजना अधिकारी रंजीत सिंह ने बताया कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को अस्थायी तौर पर शिफ्ट किया जा रहा है। इसके बाद उसे दूसरे आंगनबाड़ी केंद्र में स्थायी तैनाती दे दी जाएगी। वहीं, कारण भले ही कोई भी बताया जा रहा हो मगर इस मामले में हार आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की ही हुई है।