सरहद ने बदल दी 'मदद' की परिभाषा!
संवाद सहयोगी, चिंतपूर्णी : 'तेरे शहर में होता है पत्थरों का कारोबार, हम लोग बदनसीब ही हैं जो आइना-साज हैं।' अब इसे सरकारी मापदंडों को परिभाषित करने का दृष्टिकोण कह लें या फिर इसी तर्ज पर किसी को उपेक्षित करने का प्रावधान, लेकिन सच यही है कि एक गांव को सरहद के कारण अपने हक से वंचित रहने को मजबूर होना पड़ रहा है।
चिंतपूर्णी से महज दस मीटर की दूरी पर बसी समनोली पंचायत के हिस्से में इस धार्मिक नगरी की गंदगी तो आती है, लेकिन मंदिर न्यास की ओर से अन्य पंचायतों को मिलने वाली सुविधाएं या आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को मिलने वाला आर्थिक अनुदान भी नसीब नहीं होता है। हालांकि यह मुद्दा पूर्व में विधानसभा के पटल में भी जोर-शोर से गूंजा था, लेकिन उसके बाद भी न तो सरकार और न ही स्थानीय प्रशासन इस पंचायत के बाशिंदों के दर्द को समझ पाया।
दरअसल, समनोली पंचायत जिला कांगड़ा का हिस्सा है औैर यही पंचायत के लोगों की विडम्बना भी है। चिंतपूर्णी के आसपास की पंचायतों को मंदिर न्यास के सौजन्य से प्रति वर्ष लाखों रुपये का विशेष अनुदान क्षेत्र के विकास के लिए मिलता है। वहीं, इस पंचायत को एक रुपये की भी आर्थिक सहायता न्यास की तरफ से नहीं मिली। जिला ऊना के दूरदराज के गांवों में गरीब परिवारों की कन्या की शादी में मंदिर न्यास की तरफ से अनुदान दिया जाता है, लेकिन समनोली के लोगों को ऐसी सहायता का प्रावधान नहीं है। अगर इस पंचायत के किसी व्यक्ति की आर्थिक सहायता के लिए मंदिर न्यास के पास कभी प्रार्थना भी की गई तो नियमों का हवाला देकर उसे खाली हाथ लौटा दिया गया।
चिंतपूर्णी का दूषित पानी व गंदगी की मार इसी पंचायत पर सर्वाधिक है, जिस वजह से इस पंचायत के पेयजल स्त्रोत तक प्रदूषित हो चुके हैं। गांव को जाने वाली मुख्य सड़क पर हर वक्त गंदा पानी बहता रहता है और इसी वजह से यह सड़क जगह-जगह से टूट भी गई है। इस बारे में स्थानीय लोगों ने गत दिनों रोष प्रदर्शन भी किया था और जसवां-परागपुर के विधायक विक्रम ठाकुर ने इस मसले को विधानसभा में भी उठाया था, तब स्थानीय प्रशासन व मंदिर न्यास ने इस मामले पर कोई सर्वमान्य हल निकालने की बात कही थी, लेकिन लम्बा अरसा बीत जाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो पाया।
ग्राम पंचायत प्रधान कुलदीप कुमार सहित ग्रामीणों गगनदीप पराशर, वकील सिंह, राजेश, संजीव कुमार, राजीव और तरसेम लाल का कहना था कि उनकी पंचायत में गंदगी की वजह से लोगों का जीना दूभर हो गया है, लेकिन आज तक न तो विकास कार्यो और न ही गांव के निर्धन तबके के लोगों को आर्थिक अनुदान दिया जाता है। बताया गया कि यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो उन्हें आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।
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समनोली को आर्थिक सहायता का प्रावधान नहीं
मंदिर अधिकारी सुभाष चौहान का कहना था कि समनोली पंचायत को आर्थिक अनुदान देने का कोई प्रावधान नहीं है और गरीब कन्याओं की शादी के लिए सिर्फ जिला ऊना व कांगड़ा जिला की गंगोट पंचायत को ही आर्थिक अनुदान दिया जाता है।