समय पर इजाजत मिले तो न पैदा हो विवाद
संवाद सहयोगी, चिंतपूर्णी : श्रावण नवरात्र मेले के दौरान धार्मिक संस्थाओं की ओर से मंदिर परिसर के आसपास लंगर न लगाने की इजाजत पर पहले भी हंगामा होता रहा है और कई जगहों पर पर्याप्त जगह न होने और गंदगी फैलाने के बाद मेला प्रशासन की कार्रवाई से श्रद्धालुओं में आक्रोश के स्वर भी देखने को मिलते रहे हैं। ऐसे में धार्मिक संस्थाओं को मेले के ऐन वक्त लंगर लगाने से इंकार करना आस्था व श्रद्धा पर सीधी चोट कही जा सकती है, जबकि मेला प्रशासन मेले से पहले इस संबंध में कोई निर्णय ले सकता है। इस बारे में मंदिर न्यासियों का भी तर्क है कि न्यास को मेले से पहले ही लंगर लगाने के स्थल चयनित कर देने चाहिए और अगर कहीं कोई समस्या है तो धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधकों को इस बारे में तत्काल मनाही की जा सकती है।
मंदिर न्यासी संजीव शर्मा, शिव कुमार कौल, सतीश कालिया और निरंजन कालिया ने कहा कि लंगर लगाने के लिए मेला प्रशासन को नवरात्र शुरू होने से पहले ही योजनाबद्ध तरीके से कार्य शुरू कर देना चाहिए। इससे अगर कोई जगह लंगर लगाने के लिए उपयुक्त नहीं पाई जाती है तो प्रशासन समय रहते धार्मिक संस्थाओं को सूचित कर सकता है और ऐसे में लंगर प्रबंधक भी नियम व कानून का पालन कर सकते हैं। उनका कहना है कि मेला शुरू होने के बाद अगर लंगर लगाने की अनुमति नहीं दी जाती है, तब तक धार्मिक संस्थाएं लाखों रुपये भवनों का किराया व खाद्य सामग्री पर खर्च कर चुकी होती हैं। ऐसे में बेशक प्रशासन की सख्ती का श्रद्धालुओं में गलत संदेश भी जाता है। अगर मेले से पूर्व ही लंगर लगाने वाली जगहों का चयन कर लिए जाए तो शायद ही टकराव की कभी नौबत नहीं आए। उन्होंने मेला प्रशासन से आग्रह किया है कि लंगरों की अनुमति के लिए न्यासियों व स्थानीय लोगों को विश्वास मे लेना चाहिए। वहीं, मंदिर अधिकारी सुभाष चौहान ने कहा कि इसके लिए रूपरेखा तैयार कर ली गई है। श्रद्धालु बेशक लंगर चलाएं लेकिन क्षेत्र में गंदगी नहीं पड़नी चाहिए। लंगर देने से पूर्व संबंधित स्टाफ पहले जगह का मुआयना करेगा और उसके बाद ही लंगर चलाने की इजाजत दी जाएगी।