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अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले का आगाज, जानिए-क्यों मनाया जाता है यह मेला

श्रीरेणुकाजी मेला हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्रीरेणुकाजी में मनाया जाता है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 04:50 PM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 04:50 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले का आगाज, जानिए-क्यों मनाया जाता है यह मेला
अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले का आगाज, जानिए-क्यों मनाया जाता है यह मेला

सिरमौर, जेएनएन। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भगवान परशुराम की पालकी को कंधा देकर अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले का विधिवत शुभारंभ किया। करीब दो बजे मुख्यमंत्री का चौपर माइना गांव पहुंचा। यहां से मुख्यमंत्री का काफिला सड़क मार्ग से स्कूल मैदान पहुंचा, जहां उन्होंने विधिवत पूजा-अर्चना के बाद भगवान परशुराम की पालकी को कंधा देकर विशाल शोभायात्रा का शुभारंभ किया।

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यह पहला मौका है, जब जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार अंतरराष्ट्रीय रेणुका मेले का शुभारंभ करने पहुंचे। हालांकि, हर साल मुख्यमंत्री ही देवपालकी को कंधा देकर शोभायात्रा का शुभारंभ करते हैं। यही परंपरा कई दशकों से चली आ रही है। बहरहाल, शोभायात्रा दोपहर बाद करीब तीन बजे स्थानीय खेल मैदान से शुरू होकर ददाहू बाजार, गिरिपुल, बड़ोन, देवशिला व मेला मैदान से होते हुए शाम ढलने से पूर्व रेणुकाजी तीर्थ के त्रिवेणी संगम पर पहुंची। जहां देवताओं का पारंपरिक मिलन हुआ।

इस मिलन को नजदीक से निहारने व इस पावन पलों के साक्षी बनने के लिए हजारों श्रद्धालुओं का हुजूम मेले में दिखाई दिया। प्राकृतिक लोक वाद्य यंत्रों, शंख, घंटियाल, ढोल-नगाड़ों, बैंड-बाजे के साथ निकाली गई। 

जानिए, क्यों मनाया जाता है मेला
हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है अंतरराष्ट्रीय श्रीरेणुकाजी मेला। मां-पुत्र के पावन मिलन का यह श्रीरेणुकाजी मेला हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक प्रसिद्ध तीर्थस्थल श्रीरेणुकाजी में मनाया जाता है। जनश्रृति के अनुसार, इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुकाजी से मिलने आते हैं। यह मेला श्रीरेणुका मां के वात्सल्य व पुत्र की श्रद्धा का अनूठा संगम है जो असंख्य लोगों की अटूट श्रद्धा एवं आस्था का प्रतीक है।

मध्य हिमालय की पहाड़ियों के आंचल में सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र का पहला पड़ाव है श्री रेणुका जी। यह स्थान नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। जहां नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील जिसे मां श्रीरेणुकाजी की प्रतिछाया भी माना जाता है। इसी झील के किनारे मां श्रीरेणुकाजी व भगवान परशुरामजी के भव्य मंदिर हैं। हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान परशुराम माता रेणुकाजी से मिलने आते हैं। मां-बेटे के इस पावन मिलन के अवसर से श्रीरेणुकाजी मेला आरंभ होता है। तब की डेढ़ घड़ी आज के डेढ़ दिन के बराबर है। पहले यह मेला डेढ़ दिन का हुआ करता था। जो वर्तमान में लोगों की श्रद्धा व जनसैलाब को देखते हुए यह कार्तिक शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक आयोजित किया जाता है।

यह मेला मां रेणुकाजी के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है। एक सप्ताह तक दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम, हवन, यज्ञ, प्रवचन एवं हर्षोल्लास इस मेले का भाग है। हिमाचल प्रदेश, उतरांचल, पंजाब तथा हरियाणा के लोगों की इसमे अटूट श्रद्धा है। राज्य सरकार द्वारा इस मेले को वषरें पहले अंतररष्ट्रीय मेला घोषित किया गया है। श्रीरेणुका विकास बोर्ड द्वारा मेले की पारंपरिक गरिमा बनाए रखने के अतिरिक्त इसे और आकर्षक बनाने के लिए भरसक प्रयास किए जा रहे है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किए गए है। 


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