सरकार ने कोर्ट में किन्नौर वासियों को बताया उपद्रवी
संवाद सूत्र, कुल्लू : प्रदेश में वनाधिकार कानून-2006 को लागू करने के संदर्भ में प्रदेश सरकार का दोह
संवाद सूत्र, कुल्लू : प्रदेश में वनाधिकार कानून-2006 को लागू करने के संदर्भ में प्रदेश सरकार का दोहरा चरित्र सामने आया है। एक तरफ तो प्रदेश सरकार वनाधिकार कानून को लागू करने के दावे करती आ रही है और दूसरी तरफ प्रदेश सरकार वनाधिकार कानून के तहत होने वाली ग्राम सभाओं में आने वाले ग्रामीणों को उपद्रवी और अकुशल बता कर उनका अपमान कर रही है।
हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह ने बताया कि किन्नौर जिला की लिप्पा पंचायत में लगने वाले 130 मेगावॉट की काशंग जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण करने के मामले में एनजीटी ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए थे कि परियोजना के लिए भूमि लेने से पहले वहां पर वनाधिकार कानून के तहत लिप्पा, रारंग, पांगी व नाशंग आदि पंचायतों में ग्राम सभाओं का आयोजन किया जाए और लोगों की राय ली जाए। हैरत की बात है कि सरकार ने ग्राम सभाओं का आयोजन करने के बजाय सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके इस मामले को हैरतंगेज रुख दे दिया। गुमान ¨सह के मुताबिक हिमाचल प्रदेश बिजली कारपोरेशन लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में वहां के लोगों को उपद्रवी और अकुशल बताया है, इसलिए परियोजना के लिए भूमि के बारे में ग्राम सभा की राय उचित नहीं हो सकती है। गुमान सिंह का कहना है कि यह सीधे-सीधे वन अधिकार कानून की मूल भावना, जिसमें आदिवासियों व अन्य परंपरागत वन निवासियों को वनों व वन संसाधनों पर अधिकार को मान्यता देना व इनके अधिकारों की रक्षा करना है, का उल्लघंन है।