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शिमला में लावारिस कुत्तों का आतंक, अकेले चलना मुश्किल

राजधानी शिमला में लावारिस कुत्‍तों ने आतंक मचाया हुआ है शहर में करीब ढाई हजार लावारिस कुत्ते हैं।

By BabitaEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 11:02 AM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 11:02 AM (IST)
शिमला में लावारिस कुत्तों का आतंक, अकेले चलना मुश्किल
शिमला में लावारिस कुत्तों का आतंक, अकेले चलना मुश्किल

शिमला, अजय बन्याल। प्रदेश के हर क्षेत्र में आजकल लावारिस कुत्तों का आतंक है, लेकिन कोई भी आज तक ऐसी नीति नहीं बनी, जोकि लावारिस कुत्तों के आतंक पर लगाम लगा सके। इसका आंकलन शिमला शहर से किया जा सकता है। प्रदेश की राजधानी होने के साथ हर बार सरकार यहां दशकों से बैठती है। लेकिन शिमला शहर में प्रदेशभर में से सबसे अधिक लावारिस कुत्ते हैं।

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नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक शहर में करीब ढाई हजार लावारिस कुत्ते हैं, लेकिन हकीकत में पांच हजार से अधिक हैं। हैरानी तो इस बात की है कि सबसे अधिक वीआइपी शिमला शहर में रहते है, जिन्हें पालतू कुत्ते रखने का शौक है लेकिन उन्होंने कुत्तों का पंजीकरण तक नहीं करवाया है। लाखों पर्यटक सालाना यहां आते हैं। वह भी लावारिस कुत्तों का शिकार हो चुके हैं। रिज मैदान, माल रोड, स्कैंडल में 24 घंटे कुत्ते बैठे रहते हैं जो आए दिन कभी बच्चों को तो कभी बुजुर्गों को काट चुके हैं।
 
रिपन अस्पताल में औसतन हर महीने 70 से अधिक मामले कुत्तों के काटने के आते हैं। टूटीकंडी में डॉग हट बनाया गया था। लेकिन 2010 से डॉग हट बंद है। जब कोई कुत्ता पागल हो जाए तो 10 दिन तक रखा जाता है।10 दिन में मौत हो जाए तो ठीक है नहीं तो दोबारा कुत्ते को छोड़ देते हैं। इस वजह से साल दर साल लावारिस कुत्तों की संख्या बढ़ रही है।
 
शहर में हजारों कुत्तों की नसबंदी की गई है लेकिन फिर भी इनकी संख्या कम नहीं हुई है। उपनगरों में यही हाल है। अगर रात को कोई अकेला  व्यक्ति नजर आए तो कुत्ते पर उस पर झपट पड़ते हैं। नगर निगम को भी इसकी जानकारी है, लेकिन कुत्तों को पकड़ने का अभियान तभी शुरू होता है जब कुत्ते किसी रसूखदार को काट देते हैं। फिर कुछ दिनों बाद पुरानी व्यवस्था चल पड़ती है। पिछले साल 2018 में मात्र नगर निगम में 80 कुत्तों का पंजीकरण हुआ था और इस साल 31 मार्च तक मात्र 43 पालतू कुत्तों का पंजीकरण हुआ है। 
 
राजधानी में अनिवार्य है पंजीकरण
राजधानी में पालतू कुत्तों का पंजीकरण अनिवार्य है। लोगों को अब 50 की जगह 200 रुपये शुल्क चुकाना होगा। शहरवासियों को वीपीएचओ कार्यालय में जाकर पंजीकरण करवाना होगा। इसके बाद निगम एक टोकन जारी करेगा जिससे कुत्ते की पहचान हो सकेगी। भविष्य में इस टोकन में चिप लगाने की भी योजना है। पंजीकरण की कमजोर व्यवस्था नगर निगम के पास करीब 300 पालतू कुत्ते ही पंजीकृत हैं, जबकि शहर की आबादी दो लाख के करीब है। हजारों लोगों ने कुत्ते पाल रखे हैं, लेकिन नगर निगम में इनका पंजीकरण नहीं करवाया है। कई बार पालतू कुत्ते भी लोगों को काट लेते हैं। बावजूद इसके नगर निगम ने पंजीकरण में रुचि नहीं दिखा रहा है।
 
 
ऐसे करें पहचान कुत्ते की हुई है नसबंदी या नहीं
नगर निगम ने कुत्तों को पकड़ने के लिए टॉल फ्री नंबर 1916 जारी किया है। हालांकि इस पर शुक्रवार को कुत्तों से संबंधित एक-दो शिकायतें ही आई। नगर निगम पदाधिकारियों के अनुसार लोगों को अभी पहचान नहीं है कि कौन से कुत्ते की नसबंदी हुई है और किसकी नहीं। जिस कुत्ते का कान कटा
हुआ होता है, उसकी नसबंदी की जा चुकी होती थी। 
 
दस हजार से अधिक कुत्तों की नसबंदी
2007 से अब तक नगर निगम शहर में दस हजार कुत्तों की नसबंदी कर चुका है। पिछले छह माह में ही सौ से अधिक कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है लेकिन बेसहारा कुत्तों की संख्या कई हजारों में हो चुकी है। नगर निगम ने शहरवासियों को लावारिस कुत्तों की दहशत से बचने के लिए एक अन्य सुझाव दिया है। नगर निगम के मुताबिक शहर में नौ हजार कुत्ते लावारिस हैं। संजौली, माल रोड, लोअर बाजार, टूटु, विकासनगर, खलीनी, ढली, लक्कड़ बाजार, पंथाघाटी, विकासनगर आदि क्षेत्रों में कुत्तों का अधिक आतंक है।
 

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