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गुटबाजी से आगे नहीं बढ़ पाई हिमाचल कांग्रेस

मुख्यमंत्री के विरोधियों का कहना है कि उनके नकारात्मक रुख का परिणाम है कि कांग्रेस की हालत पतली हो गई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 25 Jun 2017 11:21 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jun 2017 11:21 AM (IST)
गुटबाजी से आगे नहीं बढ़ पाई हिमाचल कांग्रेस
गुटबाजी से आगे नहीं बढ़ पाई हिमाचल कांग्रेस

सीमा शर्मा, शिमला। मिशन रिपीट के सपने देख रही कांग्रेस दोराहे पर खड़ी है। हाईकमान के सख्त निर्देशों कि ‘सत्ता व संगठन मिलजुल कर काम करें’ के बावजूद एकजुटता कहीं नजर नहीं आ रही है। इसका ही नतीजा है कि नगर निगम शिमला पर कांग्रेस का कई वर्ष का कब्जा बरकरार नहीं रह पाया। इसका ठीकरा भी संगठन पर फोड़ा जा रहा है। कांग्रेस अब तक गुटबाजी से बाहर नहीं निकल पाई है।

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भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश में माहौल बना दिया है। भ्रष्टाचार हटाओ, प्रदेश बचाओ हो या त्रिदेव सम्मेलन या फिर रथ यात्रा। भाजपा आगे दिख रही है। कांग्रेस में आलम यह है कि एक धड़ा विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की पैरवी कर रहा है। वीरभद्र खेमे का कहना है कि यदि विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करनी है तो एक महीने के भीतर पार्टी अध्यक्ष सुक्खू की जगह किसी दूसरे को कमान मिलना जरूरी है। वीरभद्र खेमा हाईकमान के पास अध्यक्ष पद के लिए सुधीर शर्मा, कुलदीप कुमार, रामलाल ठाकुर के नाम की सिफारिश कर चुका है।

यहां तक कहा जा रहा है कि वर्तमान अध्यक्ष नगर निगम चुनाव में सभी वार्डो में प्रत्याशी तक नहीं दे पाए तो विधानसभा चुनाव क्या करवाएंगे। यहीं नहीं निगम चुनाव में कई अपने भी साथ छोड़ गए। यह वक्त अपनों को करीब लाने का था। कांग्रेस का एक धड़ा पार्टी मुखिया से इसलिए भी नाराज है कि वह शिमला से बाहर ज्यादा नहीं निकलते। तीन साल में मंत्री, विधायकों को साथ लेकर गिनी-चुनी रैलियां ही इन्होंने करवाई हैं। बताया जा रहा है चुनावी दौर में जहां सभी संगठनात्मक चुनाव के विरोध में थे, केवल एक यही चुनाव करवाना चाह रहे थे। इसके लिए इन्होंने अपनों की सदस्यता करवाकर खेल रच दिया था।

यह जंग अब दिल्ली दरबार में है। कांग्रेस नेताओं ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि यदि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को चुनावी रणनीति बनाने व टिकट चयन के लिए खुला हाथ नहीं दिया तो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय तय है। उधर मुख्यमंत्री के विरोधियों का कहना है कि उनके नकारात्मक रुख का परिणाम है कि कांग्रेस की हालत पतली हो गई है। अब सत्ता संतुलन बनाने के लिए कांग्रेस राजनीति में बदलाव आवश्यक है। पार्टी में मांग हो रही है कि कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में पराजित होने वाले प्रत्याशियों के टिकट काट नए चेहरे आगे लाए।

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