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हर साल कम हो रही सेब को मिलने वाली ठंड

प्रदेश में 19वीं सदी के दौरान 400 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बगीचे थे। वहीं, वर्ष 2016-17 में एक लाख 816 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बगीचे लगे हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 29 Nov 2017 09:41 AM (IST)Updated: Wed, 29 Nov 2017 09:44 AM (IST)
हर साल कम हो रही सेब को मिलने वाली ठंड
हर साल कम हो रही सेब को मिलने वाली ठंड

शिमला, राज्य ब्यूरो। ग्लोबल वार्र्मिंग का असर हिमाचल प्रदेश के वातावरण पर भी नजर आने लगा है। इसका असर ऋतुओं के साथ कृषि व बागवानी पर दिख रहा है। प्रदेश में हर साल सेब के बगीचे बढ़ रहे हैं, लेकिन पैदावार लगातार कम हो रही है। सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन ही है। जलवायु परिवर्तन से प्रदेश में हर साल छह चिलिंग आवर यानी वह ठंडा समय जो सेब के लिए जरूरी होता है कम हो रहा है।

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सेंटर फॉर मीडिया स्टडी (सीएमएस) और पर्यावरण एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा मंगलवार को शिमला में जलवायु परिवर्तन पर कार्यशाला में नौणी विश्वविद्यालय के बागवानी विशेषज्ञ प्रो. एसके भारद्वाज ने बताया कि सेब के पौधों को उनकी नस्ल के अनुसार 1200 से 1600 चिलिंग आवर चाहिए होते हैं। प्रदेश में 19वीं सदी के दौरान 400 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बगीचे थे। वहीं, वर्ष 2016-17 में एक लाख 816 हेक्टेयर भूमि पर सेब के बगीचे लगे हैं। ऐसे में सेब की पैदावार बढऩी चाहिए थी, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसमें लगातार कमी आ रही है। मौसम विभाग (हिमाचल प्रदेश) के निदेशक डॉ. मनमोहन सिंह ने बताया कि बरसात का समय जरूर बढ़ा है, लेकिन बारिश कम हो रही है। इस दौरान सीएमएस के महानिदेशक पीएन वसंती, पर्यावरण एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग की निदेशक अर्चना शर्मा सहित अन्य अधिकारी उपस्थित थे।

 

देश के औद्योगिक क्षेत्रों में मलेरिया व डेंगू जैसी बीमारी के संबंध में वर्ष 2008 में स्वास्थ्य विभाग को सचेत कर दिया गया था। इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया व डेंगू के मच्छरों के लारवा को अनुकूल वातावरण मिल रहा है। ऐसे में समय रहते स्वास्थ्य विभाग ने इससे बचाव को लेकर योजना तैयार की। इस कारण डेंगू का शिकार होने वाले सैकड़ों मरीजों में किसी की मौत नहीं हुई। उनका समय रहते उपचार किया जा सके। 

 

डॉ. सुरेश अत्री, प्रिंसिपल साइंटिफिक ऑफिसर, पर्यावरण एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग कम चिलिंग आवर का असर सेब को जब माकूल ठंड नहीं मिलती तो पेड़ों पर फूल आने पर असर पड़ता है। जब फ्लावरिंग कम होगी तो सेब भी कम लगेगा। अच्छी बर्फबारी के बाद ही चिलिंग आवर पूरे हो पाते है।

दो साल में बनी 109 झीलें

पर्यावरण एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर डॉ. एसएस रंधावा ने कहा कि प्रदेश में ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं। इस कारण दो साल में प्रदेश में पांच नदियों के आसपास के क्षेत्र में 109 नई झीलें बन गई हैं और नदियों का प्रवाह भी तेज हुआ है। दो साल पहले तक 596 प्राकृतिक झीलें थीं जो अब 705 हो गई हैं। ऐसे में भविष्य में प्राकृतिक झीलें कई गुणा बढ़ जाएंगी। विभाग ने इसका सर्वेक्षण रिमोट सेंसर के माध्यम से किया है। चिनाब नदी के आसपास के क्षेत्रों में सबसे अधिक प्राकृतिक झीलें बनी हैं। हालांकि सतलुज नदी पर पिछले वर्षों के दौरान एक प्राकृतिक झील बनी है। इसका कोई खास असर सतलुज पर नहीं पड़ेगा। 

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