शनि अमावस्या पर सूना रहा तत्तापानी
संवाद सहयोगी, शिमला : हिमाचल प्रदेश के मिनी कुंभ कहे जाने वाले तीर्थ स्थल तत्तापानी में शनिवार को शन
संवाद सहयोगी, शिमला : हिमाचल प्रदेश के मिनी कुंभ कहे जाने वाले तीर्थ स्थल तत्तापानी में शनिवार को शनि अमावस्या के दिन कोई खास चहल-पहल नहीं रही। शनि अमावस्या के दिन शनि ग्रह की शांति के लिए तुलादान बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। तीर्थ स्थल पर शनि अमावस्या के दिन किए गए तुलादान से सभी ग्रहों की शांति हो जाती है। जिस उद्देश्य से लोग ऐसे पर्वो पर तीर्थ स्थल तत्तपानी में स्नान के बाद तुलादान करते थे, लेकिन कोल बांध के जल भराव के कारण तत्तापानी में गर्म पानी के कुंड जलमग्न होने के कारण यहां के महत्व को लोग नकारने लगे हैं। इसका उदाहरण शनिवार को तत्तापानी तीर्थ स्थल पर देखने को मिला। जहां पर ऐसे पर्वो पर हजारों की संख्या में लोग तुलादान कर ग्रह शांति करवाते थे। शनिवार को गिने-चुने लोग ही पंडितों के पास पहुंचे और तुलादान करवाया।
लोगों का मानना है तीर्थ स्थल में मूल स्थान का महत्व अधिक होता है, लेकिन जल भराव के कारण मूल स्थान नष्ट हो गए हैं तो तीर्थ का महत्व भी कम हो गया है। तत्तापानी में तुलादान करवाने वाले पंडित भूपेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि दादा से लेकर सभी लोग यही कार्य कर रहे हैं और रोजी-रोटी भी इसी कार्य से चलती थी, लेकिन कोल डैम ने जहां लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया है वहीं हमारी रोजी-रोटी पर भी कठोर प्रहार किया है। शनि अमावस्या, जेठे शनिवार को हजारों की संख्या में लोग यहां पर तुलादान करवाने के लिए आते थे, लेकिन जल भराव के बाद अब 5 से 10 तुलादान ऐसे पर्वो पर हो रहे हैं।
क्या है महत्व
शास्त्रों के मुताबिक तुलादान से जहां ग्रह शांति होती है व मोक्ष की प्राप्ति का भी यह उत्तम साधन है। लोग अपने भार के बराबर अनाज दान करते हैं, जिससे मनुष्य के न केवल सारे पाप कट जाते हैं, बल्कि उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पवित्र कुंडों में स्नान के बाद किया जाने वाला यह तुलादान, ग्रह शात करता है, बाधाएं शात होती हैं। साथ ही इससे मोक्ष मिलता है। शनि अमावस्या के दिन इस दान का महत्व भी सौ गुना बढ़ जाता है।
बौवी पंडित
तीर्थ पुरोहित बौवी पंडित कहते हैं कि सरकार भले ही चश्मों के पानी को दूसरी जगह शिफ्ट करने की बात कर रही है, लेकिन जैसे-जैसे कोल बाध का पानी भर रहा है, इनका वजूद मिट रहा है। भले ही कई धार्मिक ग्रंथों में इस तीर्थ स्थल का उल्लेख हो, लेकिन अब ये चश्मे खुद इतिहास बनने की कगार पर हैं।