जल ही जीवन, जल ही पूजा
रश्मिराज भारद्वाज, शिमला इस मुरारी का मंत्र बहुत सरल, लेकिन असरदायक है। मंत्र है जल ही जीवन, जल ही
रश्मिराज भारद्वाज, शिमला
इस मुरारी का मंत्र बहुत सरल, लेकिन असरदायक है। मंत्र है जल ही जीवन, जल ही पूजा। करसोग घाटी की मैहरन पंचायत के जैंस गांव के मुरारी लाल को बेझिझक जल देवता का सच्चा साधक कहा जा सकता है।
उन्होंने जल की एक-एक बूंद की कीमत पहचानी और सूखी बावड़ियों को साफ करने के बाद उन्हें जल से भर दिया। उस जल की एक-एक बूंद को टैंक के जरिए सुरक्षित किया। नतीजा यह निकला कि क्षेत्र में सूख चुकी बावड़ियां इस समय जल से भरी हैं। इससे लोगों की प्यास भी बुझी और खेतों की सिंचाई भी हो रही है।
जल सरंक्षण की यह गाथा पांच साल पहले शुरू हुई। इलाके में सूखा पड़ा था। पानी के स्रोत सूख रहे थे.. पीने के पानी के भी लाले पड़ गए। मुरारी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अकेले ही निकल पड़े जलधारा लौटाने के लिए। सूख चुकी बावड़ियों के पास पहुंचे। पहले जल देवता का आह्वान किया। पूजा-अर्चना की और फिर बावड़ियों को साफ करने में जुट गए। बावड़ी को गहरा किया आसपास हरी झाड़ियां रोपी उन्हें पानी दिया। कहावत है, 'धरती का पेट भरो तो वो वापस लौटाती है'। धरती का पेट हरियाली से भरा और धरती ने पानी लौटाया। धीरे-धीरे सूखे जलस्रोतों में पानी आना शुरू हुआ। लोगों ने पानी का मोल पहचाना और आज क्षेत्र में इसकी कोई कमी नहीं है। हरियाली छाई है वो अलग।
हरि के नाम पर आई हरियाली
मुरारी ने जब सूखी बावड़ियों के आसपास हरी झाड़ियों लगाने का काम शुरू किया उस समय वह अकेले थे। धीरे-धीरे इस प्रयास को कामयाबी मिलने लगी। मुरारी ने बावड़ी में पानी लौटने के बाद रोजाना जल की पूजा शुरू कर दी। इसी जल से घर के मंदिर में ग्राम देवता की प्रतिमा का भी अभिषेक होता है। इस मुहिम से इलाके के दस परिवार जुड़ गए और अब लोग बारी-बारी से बावड़ी के पानी की पूजा करने लगे। बावड़ी की देखभाल के लिए भी इन परिवारों ने आपस में सप्ताह बांटे हैं। नतीजा गर्मियों के दिन में सूखा पड़ने के बावजूद पांच साल से बावड़ी का जलस्तर एक इंच भी नहीं गिरा है। बल्कि हरियाली से जलस्तर लगातार बढ़ रहा है।
बावड़ी के जल का संरक्षण भी
जैंस निवासी बावड़ी के पानी को पीने के लिए ही प्रयोग में नहीं लाते, बल्कि बरसात में जब इनका पानी बेकार बहता है तो उसके संरक्षण के लिए टैंक भी बनाया गया है। बावड़ी के बाहर गड्ढा खोदकर इसमें पानी को डाला गया है। यहां से इस पानी को पाइप से टैंक में डाला गया है। सूखे के दिनों में इस पानी को सिंचाई के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इसके अलावा इसी पानी से बावड़ी के आसपास लगाए पौधे को भी सींचा जाता है।
..नहीं है कोई और प्राकृतिक पेयजल स्रोत
जैंस व आसपास के क्षेत्र में बावड़ियों के अलावा कोई अन्य प्राकृतिक पेयजल स्रोत नहीं है। हालांकि गांव के हर घर में नल लगे हैं, लेकिन गर्मियों के दिनों में जलस्तर गिरने से लोगों को मुश्किल से ही पानी मिल पाता है। ऐसे में ये बावड़ियां ही पेयजल का एकमात्र सहारा होती है। देखभाल के अभाव में बावड़ियां सूख गई थी, जिससे लोगों को पेयजल के लिए भारी परेशानियों को सामना करना पड़ा। सड़क सुविधा न होने से यहां टैंकर भी नहीं पहुंच पाते। लोगों को इसी समस्या से बाहर निकालने के लिए बावड़ियों को फिर से जल से भरने का संकल्प लिया। उनका कहना है कि लोग भी अब पानी के महत्व को समझने लगे हैं।