खतरे में 500 साल पुराने मंदिर का वजूद
संवाद सहयोगी, जोगेंद्रनगर : जोगेंद्रनगर में भाषा एवं संस्कृति विभाग की अनदेखी के चलते ऐतिहासिक धरोहर
संवाद सहयोगी, जोगेंद्रनगर : जोगेंद्रनगर में भाषा एवं संस्कृति विभाग की अनदेखी के चलते ऐतिहासिक धरोहरों का वजूद खतरे में है। नेर घरवासड़ा पंचायत में स्थापित 500 वर्ष पुराने मंदिर की विभाग ने लंबे समय से सुध नहीं ली। मंदिर के जीर्णोद्धार पर पुरातत्व विभाग भी कुछ नहीं कर रहा। ऐतिहासिक धरोहर की दीवारों पर अब घास उगना शुरू हो चुका है। सरकार की ओर से अधिकृत मंदिर अब गिरने की कगार पर पहुंच चुका है। इससे पहले बरसात में मंदिर की दीवारों पर पानी के रिसाव होने पर प्राचीन मूर्तियों को भी नुकसान पहुंच चुका है। मंदिर में कोई भी स्थायी कमेटी न होने के कारण ऐतिहासिक धरोहर बदहाली के आंसू बहा रही है। प्राचीन धरोहर के संरक्षण के लिए सरकार भी ¨चतित नहीं दिख रही है।
लोगों ने कहा कि मंदिर की बदहाली के बारे में संबंधित विभाग को कई बार अवगत करवाया गया है, लेकिन कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। मंदिर के रखरखाव के लिए कुछ लोगों ने पहल भी की थी, लेकिन मंदिर को सरकारी संपति बताकर उन्हें नोटिस तलब कर मंदिर का रखरखाव करने पर भी रोक लगा दी थी। पुरातत्व विभाग भी प्राचीन मंदिर के रखरखाव पर आंखे मूंद चुका है। समय रहते विभाग ने मंदिर का रखरखाव नहीं किया तो प्राचीन धरोहर का इतिहास महज कागजों तक ही सीमित रह जाएगा।
प्रदेश के 50 व 100 साल पुराने प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए प्रदेश सरकार की ओर से करोड़ों रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है। प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार पर कोई भी लापरवाही नहीं बरती जाएगी। जल्द टीम मंदिर का निरीक्षण कर ऐतिहासिक धरोहर के रखरखाव के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।
राजकुमार सकलानी, जिला भाषा एवं संस्कृति अधिकारी
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पूर्व भाजपा सरकार के समय मंदिर के सुंदरीकरण के लिए पर्यटन विभाग से पांच लाख रुपये स्वीकृत करवा दिए थे। विभाग को मंदिर के रखरखाव के बारे में कई बार चेताया जा चुका है। इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण पर प्रदेश सरकार लापरवाही बरत रही है। समस्या को अब राज्यपाल के समक्ष उठाउंगा।
ठाकुर गुलाब ¨सह, विधायक
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यह है प्राचीन मंदिर का इतिहास
मंदिर के इतिहास का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है, लेकिन कहा जाता है। इस मनवंतर के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने उपमंडल जोगेंद्रनगर के गांव नेर-मझारनू में करीब 500 साल तक तप किया था। इसके बाद इस तपस्थल पर द्वापर काल में ही भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर की स्थापना ऋषियों ने की थी। बताया जाता है कि इस स्थान की शक्तियों की ओर से महा कलयुग को समाप्त किया जाएगा क्योंकि यह स्थान भी बद्रीनाथ धाम के समकक्ष है। इस स्थान को कलयुग में सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान माना गया है। लक्ष्मी नारायण मंदिर को भगवान विष्णु के अन्य मंदिरों से सर्वाधिक शक्तिशाली भी माना जाता है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की कई मनोकामनाएं भी पूरी हुई हैं। कुछ साल पहले लक्ष्मी नारायण की पूजा-अर्चना के दौरान मंदिर की घंटियां स्वयं बजने लगी थी और मूर्ति अपने स्थान से करीब चार से पांच इंच तक आगे सरक गई थी, लेकिन दूसरे दिन मूर्ति अपने स्थान पर आ पहुंची थी, जिसे श्रद्धालु भगवान विष्णु का साक्षात करिशमा मानते हैं।