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अब जाल में फंसेगी ज्यादा मछली

हंसराज सैनी, मंडी प्रदेश के मछुआरों के जाल में अब ज्यादा मछली फंसेगी। मछली उत्पादन को बढ़ावा देने

By Edited By: Published: Sun, 26 Oct 2014 01:13 AM (IST)Updated: Sun, 26 Oct 2014 01:13 AM (IST)
अब जाल में फंसेगी ज्यादा मछली

हंसराज सैनी, मंडी

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प्रदेश के मछुआरों के जाल में अब ज्यादा मछली फंसेगी। मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने प्रदेश के जलाशयों में मछली का आखेट करने वाले करीब 747 मछुआरों को मुंबई निर्मित गिल जाल देने का फैसला किया है।

आम जाल के मुकाबले गिल जाल में अधिक मछली फंसती है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जाल खरीदने पर मछुआरों को 75 फीसद अनुदान मिलेगा। मत्स्य विभाग ने एक गिल जाल की कीमत चार हजार रुपये तय की है। अनुदान के बाद मछुआरे को जाल एक हजार में मिलेगा। गोविंद सागर व पौंग जलाशय में मछली का आखेट करने वाले मछुआरे आम तौर पर खुद तैयार किए गए जाल का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह के जाल में मछली कम फंसती है। पैसे के अभाव में गरीब तबके के मछुआरे जाल नहीं खरीद पाते हैं। अब 747 मछुआरों को गिल जाल मिलेंगे और इनमें से 227 मछुआरे अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। मछली पकड़ने के लिए मछुआरे शाम के समय जलाशयों में जाल लगाते हैं। अगली सुबह जाल को जलाशय से बाहर निकालते हैं। स्थानीय स्तर पर बनाए गए जाल में तकनीक की कमी से कम मछली फंसती है। आधुनिक तकनीक से बने गिल जाल के इर्द-गिर्द मछली जैसे ही पहुंचती है जाल में उसका गिल फंस जाता है। दम घुटने से मछली की कुछ ही क्षणों में मौत हो जाती है। मरने के बाद भी मछली पूरी तरह से जाल में फंसी रहती है। गोविंद सागर में हर वर्ष 1400 व पौंग जलाशय में 300 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है। मंडी, बिलासपुर व कांगड़ा जिलों के सैकड़ों मछुआरों की आजीविका मछली आखेट पर निर्भर है। गिल जाल व अनुदान सिर्फ उन्हीं मछुआरों को मिलेगा जो विभाग के पास पंजीकृत हैं। मत्स्य विभाग के निदेशक गुरचरण सिंह ने मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रदेश के जलाशयों में मछली का आखेट करने वाले 747 मछुआरों को राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के गिल जाल 75 फीसद अनुदान पर देने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि मछली का अधिक आखेट होने से मछुआरों की आर्थिकी और ज्यादा सुदृढ़ होगी।


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