रोहतांग, बारालाचा व तांगलंगला दर्रा दे सकते हैं चुनौती
संवाद सहयोगी, मनाली : जम्मू-कश्मीर में आई प्राकृतिक आपदा से बंद हुए कश्मीर-लेह मार्ग के कारण सेना के वाहनों ने मनाली-लेह का रुख कर लिया है। इस मार्ग पर 17 हजार फुट ऊंचे तांगलंगला दर्रे सहित 16050 फुट बारालाचा व 13050 फुट ऊंचा रोहतांग दर्रा बीआरओ को चुनौती दे सकता है। हालांकि रोहतांग दर्रे की ऊंचाई इन दोनों दर्रो से कम है लेकिन इन सभी में रोहतांग ही सबसे कठिन व चुनौती से भरा हुआ है।
इतिहासकारों का मानना है कि मनाली-लेह मार्ग का रोहतांग दर्रा अब तक सबसे अधिक जानलेवा साबित हुआ है। इसी दर्रे में सबसे अधिक बर्फ पड़ती है और दुर्घटनाएं भी होती हैं। बीआरओ की हिमांक परियोजना जोकि लेह से सरचू तक मार्ग का भाग देख रही है, की राहें फिर भी आसान हैं लेकिन मनाली से सरचू तक मार्ग की मरम्मत में जुटी बीआरओ की दीपक परियोजना के लिए मार्ग बहाली लंबे समय तक जारी रखना चुनौतीपूर्ण है।
मनाली से सरचू तक दीपक परियोजना की 70 आरसीसी के जवान इन दिनों मनाली, मढ़ी, रोहतांग दर्रा, ग्रांफू, कोकसर, सिसू, तांदी, केलंग, जिस्पा, दारचा, जिंगजिंगबार, बारालाचा, भरतपुर व सरचू प्वाइंट पर मरम्मत कार्य जारी है। इस मार्ग पर बीआरओ के जवान सबसे ऊंचे प्वाइंट जिंगजिंगबार में ट्रांजिट कैंप में रहते हुए सेना के लिए रास्ता बना रहे हैं।
दूसरी ओर लेह से सरचू तक मार्ग का जिम्मा संभाले हिमांक परियोजना को तांगलंगला दर्रा चुनौती दे रहा है। हालांकि इस दर्रे में बर्फ कम पड़ती है लेकिन एकांत होने के कारण यह भी जोखिम से भरा है। हिमांक परियोजना के जवान पांग, तांगलंगला, उपशी, करू व लेह में सड़क मरम्मत कार्य कर रहे हैं।
कमांडर कर्नल राजेंद्र का कहना है कि मनाली-लेह मार्ग पर तीन दर्रे उनकी दिक्कतों को बढ़ाते हैं। सुरंग के बनने पर रोहतांग दर्रे की दिक्कत तो समाप्त हो जाएगी लेकिन भविष्य में बारालाचा व तांगलंगला दर्रे की दिक्कतों को भी दूर करने पर विचार करना होगा। ताकि सेना के रास्ते को बीआरओ 24 घंटे खुला रख सके।