गंगथ में स्थापित है अद्भुत शिवलिंग
पप्पू कौशल, गंगथ गंगथ जिला कागड़ा का एक प्रसिद्ध स्थान रहा है। कहा जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल
पप्पू कौशल, गंगथ
गंगथ जिला कागड़ा का एक प्रसिद्ध स्थान रहा है। कहा जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में लार्ड वारेन हेस्टिंगस ने इस स्थान को गंगस्थल के नाम से पुकारा। यह स्थान एक तप स्थली रहा है। उन्नीसवीं सदी के प्रथम दशक में गंगथ का एक ग्वाला अपने पशु चराने प्रतिदिन साथ लगते रप्पड़ के जंगल में जाया करता था। एक दिन जंगल में वह कंदमूल उखाड़ने लगा। उसने इसके लिए गहरा गड्ढा खोदा। ज्यों ही उसने गड्ढे को और गहरा करने के लिए कुदाल मारा वह पत्थर से टकराया और क्षण में गड्ढा लहू से भर गया। ग्वाले ने इस चमत्कार से भयभीत होकर शोर मचाया और गंगथ की ओर भागा। इस पर लोग इकट्ठा हुए गड्ढे को चौड़ा करके खोदा। खोदने पर उन्हें शिवलिंग मिला। वे शिवलिंग को पालकी में डाल कर गंगथ की ओर चले गए। यह वही शिवलिंग था, जिसे राजा जगत सिंह ने मुगलों से युद्ध से पूर्व रप्पड़ के जंगल में सुरक्षित रखा था। गंगथ के बाज़ार के मध्य जिस स्थान पर मंदिर बना है पालकी वहा रखी गई। मूर्ति की स्थापना बारे वहा इकट्ठे हुए लोगों में झगड़ा हो गया। कुछ लोग इसे नूरपुर दुर्ग में स्थापित करना चाहते थे और कुछ लोग इसकी स्थापना इंदपुर, इंदौरा में करना चाहते थे। अन्त में मूर्ति को इंदपुर ले जाने की बात मान ली गई, परंतु पालकी में रखा यह शिवलिंग इतना भारी हो गया कि वहां से उठाया ही नहीं जा सका। अत: इसे यहीं स्थापित कर दिया गया। शिवरात्रि के दिन यहा एक बड़ा मेला लगता है और दूर-दूर से यात्री इस ग्यारह सौ रुद्रियों वाले सफेद शिवलिंग को देखने आते हैं।