76 की उम्र में भी तराश रहे 'नगीने'
शिवालिक नरयाल, भवारना बुलंद हौसले और जुनून के आगे कोई भी सीमा अहमियत नहीं रखती। उम्र के जिस पड़ाव
शिवालिक नरयाल, भवारना
बुलंद हौसले और जुनून के आगे कोई भी सीमा अहमियत नहीं रखती। उम्र के जिस पड़ाव में आदमी थक-हारकर बस प्रभु का नाम लेना ही पसंद करता है उस उम्र में एक गुरु का जोश कम होने का नाम नहीं ले रहा। वह 76 वर्ष की उम्र में भी बास्केटबॉल की नई पौध तैयार करने में जुटे हैं। यह वह शख्शियत हैं जिन्होंने 100 से अधिक राष्ट्रीय और चार अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भारत को तराश कर दिए हैं।
यहा बात हो रही है भवारना निवासी जन्म सिंह कटोच की। जिनमें प्रतिभाओं को खोजने का हौसला अभी भी बुलंद है। प्रशिक्षण के पहले अनुभव में उन्होंने गोवा राज्य की टीम को राष्ट्रीय खेलों में दो रजत, तीन कास्य पदक क्या दिलाए इसके बाद कारवा रुका ही नहीं। उन्होंने जेसी कटोच को भी राष्ट्रीय स्तर का कोच बना दिया। 1990-91 में जब जेसी कटोच ने भारतीय मिनी टीम को पाच वर्षो में ही चौथा स्वर्ण पदक दिलवाने में कामयाबी पाई तो वर्ष 1995 में एशियन स्कूल बास्केटबॉल चैंपियनशिप में सिओल कोरिया गई भारतीय टीम को कोचिंग देने का भी जिम्मा बखूवी निभाया। अंडर-19 भारतीय टीम इस स्पर्धा में कोरिया, जापान, चाइना, हांगकाग, फिलीपीन आदि टीमों के साथ भिड़ने के बाद टीम ने चौथे स्थान पर अपनी जगह बनाई थी। उस समय जेसी कटोच हिमाचल के पपरोला के भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र में बतौर कोच तैनात थे। इसी के चलते उन्होंने भारत की अंडर-19 बास्केटबॉल टीम को प्रशिक्षण दिया था।
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साबा में फौजियों को दे रहे प्रशिक्षण
सेना के कमाडिंग अधिकारी विक्रमवीर सिंह के विशेष आग्रह पर जेसी कटोच इन दिनों पंजाब रेजीमेंट की 20, 29, 15 पंजाब बटालियनों के करीब 36 जवानों को बास्केटबॉल की ट्रेनिंग दे रहे हैं। कटोच इसके अलावा साल में सनावर सोलन के लॉरेंस स्कूल के बच्चों को भी हर वर्ष ट्रेनिंग देते हैं। इसके अलावा कभी-कभी भवारना के बच्चों को भी ट्रेनिंग देते हैं। जेसी कटोच की पत्नी सेवानिवृत्त शिक्षक शकुंतला कटोच कहतीं हैं कि जब भी उन्हें कोचिंग के लिए कहीं बाहर बुलाया जाता है तो वह घर परिवार तक को भूल जाते हैं।
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प्रदेश में खेल सुविधाओं से आहत हैं : कटोच
प्रदेश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बशर्ते उन्हें निखारने के लिए उचित सुविधाएं प्रदेश सरकार मुहैया करवाए। सरकारी उपेक्षा के चलते बास्केटबॉल जैसी प्रतिभाओं का अस्तित्व खतरे में है। वर्तमान में खिलाड़ियों को खेलने के लिए उचित बास्केटबॉल कोर्ट और इनडोर स्टेडियम भी उपलब्ध नहीं हैं। बाहरी राज्यों में खिलाड़ियों को ज्यादा सुविधाएं दी जा रही हैं।