नवविवाहितों का 'काला महीना' शुरू
शिवालिक नरयाल, भवारना : सावन साजन संग गुजारने के बाद कांगड़ा जिले की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुज
शिवालिक नरयाल, भवारना : सावन साजन संग गुजारने के बाद कांगड़ा जिले की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुजारने अपने मायके जाने को तैयार हैं। इस बार काले महीने से पहले पंडितों के मुताबिक अस्त पड़ने वाला है, इसलिए इस बार नई नवेली दुल्हनों की छुट्टी एक महीने की बजाय डेढ़ महीने की होगी। इस जुदाई से नए दूल्हे भी उदास हैं। क्योंकि अब उन्हें अपनी जीवन संगिनी के दीदार भी डेढ़ माह बाद ही होंगे। रीति रिवाज के मुताबिक इन दिनों में सास-बहु और दामाद-सास का एक दूसरे को देखना वर्जित माना जाता है। इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है।
उधर बिटिया के घर आने की ़खुशी में उसके अम्मा बापू भी घर की चौखट पर खड़े इंतजार कर रहे हैं। पहाड़ी प्रथा के अनुसार काला महीना गुजारने को नवविवाहिता को पूरी तैयारी के साथ भेजा जाता है। एक दिन पहले ही पकवान बना दिए जाते हैं। एक बड़े टोकरे में इन पकवानों को भरकर दुल्हन के साथ मायके छोड़ कर आते हैं। दुल्हनों को इतनी लंबी छुट्टी शादी के बाद पहली बार यह ही मिलती है। सावन के ़खत्म होने और भाद्रपद के आगाज के साथ ही काला महीना शुरू हो जाता है। इस बार यह महीना 17 अगस्त से शुरू हो रहा है, लेकिन उससे पहले पांच अगस्त से अस्त पड़ रहा है, इसलिए अब दुल्हनों को पांच अगस्त से पहले ही अपने मायके पहुंचना होगा। यानि दो, तीन और चार अगस्त को दुल्हनें मायके चली जाएंगी। इलाके के बुजुर्ग कलावती देवी, कृष्णा देवी व उर्मिला देवी बताती हैं कि नई दुल्हन को छोड़ने या तो पति खुद जाता है अथवा ससुर भी छोड़ आते हैं।
नई नवेली दुल्हनों को काले महीने में मायके भेजने के इस रीति रिवाज को कांगड़ा के अलावा मंडी, बिलासपुर, ऊना व चम्बा जिलों में भी मनाया जाता है।
युवा पीढ़ी ने अपनाया नया तरीका
भले ही आज की युवा पीढ़ी से इन रिवाजों को मानने से थोड़ी हिचकिचती हो, लेकिन आज इन नए नवेले जोड़ों ने काला महीना मनाने का नया तरीका अपनाया है । परवाणु में नौकरी करने वाले विनीत का कहना है वह काला महीने में अपनी बीवी को अपने साथ परवाणु ले जाएंगे। वहीं कुछ ने इन दिनों घर और ससुराल से दूर घूमने फिरने का प्लान बना लिया है। इससे एक तरफ जहां घूम फिर कर खूब मौज भी हो जाएगी और काला महीना भी कट जाएगा।