नहीं रहे साहित्य और कला के सुखदेव
जागरण संवाद केंद्र, धर्मशाला : साहित्य एवं कला को समर्पित पूर्व वरिष्ठ जिला भाषा अधिकारी सुखदेव शर्म
जागरण संवाद केंद्र, धर्मशाला : साहित्य एवं कला को समर्पित पूर्व वरिष्ठ जिला भाषा अधिकारी सुखदेव शर्मा के निधन से लेखक वर्ग सदमे में है। सुखदेव शर्मा की पहचान एक ऐसे भाषा अधिकारी, साहित्यकार और कला पारखी के रूप में रही है जो सबको साथ लेकर चला। कम से कम कांगड़ा जिले में सभी साहित्यिक संस्थाओं को उनका एक समान सहयोग मिलता रहा जिसके कारण उनके चाहने वालों की सूची लंबी है। इधर के परिवेश में साहित्यिक संगोष्ठियों का वातावरण बनाने के लिए जाने जाते सुखदेव का बुधवार को देहांत हो गया। वह 66 वर्ष के थे। उनके दोनों पुत्र अपना व्यवसाय करते हैं जबकि पत्नी अध्यापिका रही हैं।
उन्हें छोटा भाई बताते हुए डॉ. गौतम व्यथित का कहते हैं, 'कांगड़ा कल्चर सोसाइटी की पत्रिका 'हिमसुमन' के संपादन और प्रस्तुतिकरण में उनका योगदान हमेशा याद रहेगा.. अंतर्मुखी थे और बेहद शालीन। कांगड़ा लोक साहित्य परिषद की स्थापना से ही उसके साथ जुड़े रहे। उनके पास मंदिरों का जिम्मा भी रहा और सभी उपायुक्त उनकी बात का सम्मान करते थे। कितनी ही पुस्तकों की भूमिका लिखी, गढ़ किलों पर काम किया। कई पुस्तकों का संपादन किया मगर अपनी कोई पुस्तक नहीं छपवाई।'
डॉ. प्रत्यूष गुलेरी रुंधे गले से कहते हैं, 'अभी अस्तुसिंचन से लौटा हूं.. अजीब संबंध था उनके साथ.. जमीन एक साथ ली, घर एक साथ और पास-पास बनाए.. अब अंतिम यात्रा से पूर्व भी अपना स्पर्श दिया। 2006 में सेवानिवृत्त हुए थे। रचनाशीलता के धनी और पारखी थे। उनके जाने से इधर के परिवेश ने एक भला इंसान और सच्चा साहित्यकार खोया है।'
उधर, प्रदेश के अन्य साहित्यकारों में डॉ. सुशील कुमार फुल्ल भी इस बात को रेखांकित करते हैं कि सुखदेव शर्मा का कांगड़ा में साहित्यिक वातावरण बनाने में उत्कृष्ट योगदान रहा है। उनके सेवाकाल में लगभग हर संस्था सक्रिय थी। गजलकार द्विजेंद्र द्विज, पवनेंद्र पवन और क्षेत्र के कई साहित्यकारों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।