अब स्वास्थ्य शिक्षा समिति के पाले में गेंद
जागरण संवाददाता, टांडा : एमबीबीएस के चौथे बैच की 100 सीटों की मान्यता के लिए व्यवस्थाएं जांचकर भारती
जागरण संवाददाता, टांडा : एमबीबीएस के चौथे बैच की 100 सीटों की मान्यता के लिए व्यवस्थाएं जांचकर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की टीम मंगलवार को लौट गई। मंगलवार को एमसीआइ की दो सदस्यीय टीम ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (आरपीजीएमसी) कांगड़ा स्थित टांडा से संबद्ध ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र शाहपुर व शहरी स्वास्थ्य केंद्र नगरोटा बगवां का दौरा किया।
एमसीआइ टीम के दो सदस्य आगरा से डॉ. अजय अग्रवाल व हल्द्वानी से डॉ. जेएस वर्मा सोमवार को सुबह आरपीजीएमसी के औचक निरीक्षण पर पहुंचे थे। दोनों सदस्यों ने अस्पताल में मरीजों व अध्ययनरत प्रशिक्षुओं को दी जाने वाली सुविधाओं की जानकारी हासिल की। उन्होंने अस्पताल में कार्यरत स्टाफ व फेकल्टी के प्रमाण पत्र भी जांचे। मंगलवार को उन्होंने कम्यूनिटी मेडिसिन विभाग का दौरा किया व बाद में आरपीजीएमसी से संबद्ध ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र शाहपुर व शहरी स्वास्थ्य केंद्र नगरोटा बगवां के निरीक्षण पर गए। सायं करीब साढे़ तीन बजे दोनों सदस्य लौट गए। दोनों सदस्य अपनी रिपोर्ट अब भारतीय चिकित्सा परिषद की गवर्निग बॉडी को सौंपेंगे। उसके बाद स्वास्थ्य शिक्षा समिति की बैठक में आरपीजीएमसी को एमबीबीएस की सौ सीटों को मान्यता देने के संबंध में निर्णय लिया जाएगा। एमसीआइ की टीम ने इसी साल 1 अप्रैल को आरपीजीएमसी का दौरा किया था और उस दौरान ढांचागत, फेकल्टी व अन्य कमियां पाकर मान्यता से इन्कार कर दिया था। बाद में सरकार ने मामले में हस्तक्षेप करके मुख्य सचिव के माध्यम शपथपत्र दायर किया था कि सारी कमियों को दुरुस्त कर दिया जाएगा। इसी संबंध में एमसीआइ ने अब आरपीजीएमसी का दौरा किया है।
टांडा प्रशासन की नाकामी फिर पड़ सकती है भारी
आरपीजीएमसी प्रशासन ने शायद एमसीआइ के पहले हुए दौरों से कोई सबक नहीं लिया है। इसी का नजीता है कि अस्पताल में व्यवस्थाएं अब भी लगभग वैसी ही हैं, जैसी पहले थीं। हालांकि सरकार ने अपने स्तर पर प्रयास कर अन्य अस्पतालों से चिकित्सकों को टांडा में तैनात करने का प्रयास तो किया, परंतु एमसीआइ के थोड़ा पहले ही टांडा आ धमकने से सरकार अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाई। यही कारण रहा है कि मंगलवार को भी कुछ डॉक्टरों ने टांडा में ज्वाइनिंग दी व फार्म भरकर कार्यालय में जमा करवाए।
अब अगर कमियों के सुधार की बात की जाए तो उसमें कुछ खास सुधार नहीं आया है। न तो लेक्चरर थियेटर की हालत सुधर पाई है और न ही विद्यार्थियों के लिए कॉमन रूम बन पाया है। ओपीडी के बाहर अब भी रजिस्टर पर पर्ची सिक्योरिटी गार्ड ही दर्ज कर रहे हैं। रिकार्ड रूम में नियमित नियुक्ति नहीं हो पाई है। कुछ प्रशिक्षुओं ने तो यहां तक बताया कि लाइब्रेरी में अभी तक न तो नई किताबें उपलब्ध हो पाई हैं और न ही रिसर्च जर्नल। ये सारे सुधार अस्पताल प्रशासन के हाथ में हैं, परंतु प्रशासन नकारात्मक रवैया अपनाए हुआ है जिसका खामियाजा फिर कहीं सरकार को न भुगतना पडे़।