किसानों के लिए परेशानी का सबब बनी स्नेल
नीरज व्यास, पालमपुर
आम दिखने वाली स्नेल(फिल) अब किसानों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है। यह किसानों द्वारा बोई फसलों को चट कर रही है। हालांकि किसान स्नेल किल्लर का प्रयोग कर फसलों को कुछ हद तक बचाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिल पा रहा। हिमाचल प्रदेश कृषि अधिकारियों की राज्य स्तरीय बैठक में यह बात उभरकर सामने आई है कि कुल्लू, बिलासपुर, कांगड़ा व मंडी जिला सहित अन्य जिलों में भी अब स्नेल का आतंक किसानों को डराने लगा है। कार्यशाला में फसल के दौरान आने वाली समस्याओं को बताने व उनके समाधान के सत्र में विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों ने स्नेल की समस्या को सामने रखा। इस पर कोई भी स्नेल किल्लर काम नहीं कर रहा।
वहीं, मंडी जिला से आए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किसान परमानंद ने सुझाव दिया कि वह अपने खेतों में स्नेल को मारने के लिए फटकरी के घोल का प्रयोग कर रहे हैं। उनके मुताबिक एक किलोग्राम फटकरी को 20 लीटर पानी में घोलकर खेतों में स्प्रे करने से स्नेल फसल पर हमला करने के काबिल नहीं रहती और वह सुस्त पड़ जाती है। लेकिन यह एक परंपरागत तरीका है। वहीं एक कृषि अधिकारी ने मेथोमिल व गुड के घोल खेतों में स्प्रे करने का सुझाव दिया है। स्नेल किल्लर असरदायी न होने के कारण अब यह शोध का विषय बन गया है कि इसे खत्म करने के लिए ज्यादा स्ट्रांग किल्लर चाहिए या फिर परंपरागत तरीका फटकरी का घोल बेहतर है।
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कहां क्या आ रही समस्या
-कुल्लू में आलू की फसल में मौसम की समस्या आ रही है, यहां कुफरी ज्योति की मांग है, लेकिन यह उपलब्ध नहीं हो पा रहे।
-सोलन के कृषि अधिकारी ने अपनी बात रखी कि रवि की फसल में गेहूं के बीज एचपी डब्ल्यू 236 की चपातियां अच्छी नहीं बन रहीं। इसलिए इसमें शोध की आवश्यकता है।
-ऊना के अधिकारी ने ब्लाइट कीट की समस्या बताई।
-सिरमौर जिला के कृषि अधिकारी ने अदरक के विकसित बीज की आवश्यकता पर बल दिया।
-कुल्लू में लहसुन जीएचसी किस्म में शोध की आवश्यकता है।