खुद अगला अवतार तय करेंगे दलाईलामा
हर दलाईलामा अपनी मौत से पहले ऐसे संकेत वरिष्ठ लामाओं को देकर जाते हैं, जिससे उनके अगले अवतार की पहचान आसानी से की जा सके।
शिमला, जेएनएन। 90 साल की उम्र में खुद अगले अवतार का निर्णय लेंगे दलाईलामा तिब्बतियों में चीन के बयान के मायने नहीं दिनेश कटोच, धर्मशाला भले ही चीन ने इस बार खुद अगला दलाईलामा तय करने का दावा किया हो, लेकिन तिब्बती परंपरा के आगे यह फीका पड़ जाएगा। क्योंकि दलाईलामा के हर अगले अवतार को दलाईलामा खुद तय करते आए हैं। हर दलाईलामा अपनी मौत से पहले ऐसे संकेत वरिष्ठ लामाओं को देकर जाते हैं, जिससे उनके अगले अवतार की पहचान आसानी से की जा सके। मौजूदा समय में यह परंपरा 14वें दलाईलामा तक पहुंची है।
दरअसल, दलाईलामा अपने अगले अवतार के बारे 90 वर्ष की आयु में निर्णय लेंगे। 82 बसंत देख चुके दलाईलामा ने बार-बार कहा है कि तिब्बती बौद्ध परंपराओं के उच्च लामाओं, तिब्बती समेत तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करने वाले संबंधित लोगों से विचार विमर्श के बाद ही वह निर्णय लेंगे कि दलाई लामा की परंपरा को जारी रखना चाहिए या नहीं। दलाई लामा ने कुछ साल यह भी कहा था कि इस विषय में वह स्पष्ट लिखित निर्देश छोड़कर जाएंगे। जाहिर है वह बार-बार चीन को भी स्पष्ट कर चुके हैं कि अगला दलाईलामा भी वह ही खुद तय करेंगे। क्योंकि तिब्बती अनुयायी परंपरा के अनुसार उसे ही दलाईलामा मानेंगे, जिस पर मौजूदा अवतार की मुहर होगी। इस बारे 24 सितंबर 2011 को दलाईलामा ने खुद स्पष्ट भी किया था।
कुछ वरिष्ठ लामाओं की मानें तो दलाईलामा अब भी इस बारे कुछ संकेत दे चुके हैं। दलाई लामा ने चीन को यहां तक संदेश दिया है कि अगले दलाई लामा वहां अवतार ले ही नहीं सकते जहां आजादी न हो। क्या है दलाई लामा दलाईलामा मंगोल भाषा का एक ऐसा शब्द जिसका सामान्य अर्थ है ज्ञान का महासागर। दलाईलामा कोई नाम नहीं है, बल्कि यह दलाईलामा के अवतार के रूप में जन्म लेने वाले को मिलने वाली एक पहचान है। दलाईलामा की पदवी सबसे पहले तिब्बत के तीसरे सबसे सर्वोच्च धर्मगुरु सोनम ज्ञाछो को मंगोलिया ने दी थी।
कम रोचक नहीं है 14वें दलाईलामा की पहचान मौजूदा दलाईलामा का असली नाम तेजिंन ग्यात्सो है। तेजिंन ग्यात्सो बनने से पूर्व यह नाम था, ल्हामो थोंडुंप। इसका तिब्बती भाषा में अर्थ हुआ मनोकामना करने वाला। 6 जुलाई 1935 को उत्तरी तिब्बत में आमदो के एक छोटे से गांव तकछेर में एक किसान परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। उस समय उस बच्चे के व्यवहार को देखते हुए उन माता पिता ने उस बच्चे को ल्हामो थोंडुंप का नाम दिया। दो वर्ष की आयु में ल्हामो थोंडुंप की पहचान तिब्बत के वरिष्ठ लामाओं ने तेरहवें दलाई लामा थुबतेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की। थुबतेन ग्यात्सो ने जो संकेत अपनी मौत से पहले दिए थे। उन संकेतों से ही 14वें दलाईलामा की पहचान हुई थी।
2011 में लिया था बड़ा फैसला वर्ष 2011 में मौजूदा दलाईलामा ने एक बड़ी परंपरा को तोड़ दिया था। दलाईलामा ही तिब्बत के सर्वोच्च राजनीतिक प्रमुख होते थे। यानी राजनीति से धर्म तक, सभी निर्णय दलाईलामा ही लेते थे, लेकिन 29 मई 2011 को दलाईलामा से राजनीतिक अधिकार खुद एक प्रक्रिया के तहत निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रमुख को सौंप दिए थे। अब दलाईलामा केवल सर्वोच्च धर्मगुरु ही हैं।
24 साल की उम्र में छोडऩा पड़ा था देश तिब्बत पर चीन के आक्रमण के बाद वर्ष 1959 में दलाईलामा को अपने कई अनुयायियों के साथ देश छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा था। उस समय उनकी आयु 24 वर्ष की थी। दलाईलामा बेहद जोखिम भरे रास्तों को पारकर भारत पहुंचे थे। कुछ दिन उन्हें देहरादून में ठहराया गया था। उसके बाद उन्हें धर्मशाला के मैक्लोडगंज में रहने की सुविधा दी गई है। यहां उनका पैलेस, बौद्ध मंदिर है। इसके कुछ फासले पर ही निर्वासित तिब्बत सरकार भी कार्य करती है। 14वें दलाईलामा शांति प्रिय व्यक्ति हैं। 1989 में तिब्बत को स्वतंत्र कराने में उनके अङ्क्षहसात्मकसंघर्ष के लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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