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हड़ताल की दुत्कारी जिंदगी निजी अस्पताल ने संभाली

समय : सुबह साढ़े 11 बजे। स्थान : क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला, आपातकालीन कक्ष के बाहर। क्षेत्रीय अ

By Edited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 01:00 AM (IST)
हड़ताल की दुत्कारी जिंदगी निजी अस्पताल ने संभाली
हड़ताल की दुत्कारी जिंदगी निजी अस्पताल ने संभाली

समय : सुबह साढ़े 11 बजे।

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स्थान : क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला, आपातकालीन कक्ष के बाहर।

क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला के आपातकालीन कक्ष के बाहर प्रसव पीड़ा से बेहाल महिला परिजनों के साथ पहुंची। दर्द से कराहती महिला को परिजन जल्द आपातकालीन कक्ष के अंदर ले गए। यहां उपस्थित चिकित्सक ने पूछा क्या हुआ, परिजनों का जवाब था प्रसव पीड़ा है। परिजनों को बताया गया कि आज चिकित्सकों की हड़ताल है। स्त्री रोग विशेषज्ञ अवकाश पर हैं। सिर्फ आपातकालीन सेवाएं दी जा रही हैं। चिकित्सक ने गर्भवती महिला को डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा रेफर कर दिया।

यह सुनते ही परिजन चिंता में डूब गए कि क्या किया जाए? इन हालात में टांडा मेडिकल कॉलेज का रुख किया जाए या निजी चिकित्सालय का। क्योंकि टांडा मेडिकल कॉलेज भी तो सरकारी है और अगर वहां भी हड़ताल हुई तो क्या करेंगे? परिजनों ने इसी उधेड़-बुन में निजी चिकित्सालय का रुख करना ही बेहतर समझा।

प्रसव पीड़ा से कराहती खनियारा निवासी रेणुका देवी के परिजन भी सोमवार को डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मानसिक परेशानी से गुजरे। रेणुका को सुबह ही प्रसव पीड़ा शुरू हुई थी। परिजन उसे लेकर तुरंत क्षेत्रीय चिकित्सालय पहुंचे थे, लेकिन चिकित्सकों के सामूहिक अवकाश के कारण उन्हें बिना उपचार ही लौटना पड़ा। सुबह साढ़े ग्यारह बजे ही इस क्षेत्रीय चिकित्सालय की व्यवस्था का आलम था। धीरे-धीरे जैसे लोगों को चिकित्सकों के सामूहिक अवकाश की जानकारी मिलती रही लोग यहां पहुंचने से पहले ही निजी चिकित्सालयों की ओर मुड़ना शुरू हो गए, लेकिन सरकार की विभिन्न योजनाओं पर आश्रित गरीब परिवारों के पास कोई ऐसा विकल्प नहीं था।

वहीं, चिकित्सकों की अपनी पीड़ा है। सामूहिक अवकाश पर जाना उनकी मजबूरी हो सकती है, लेकिन सरकार व प्रशासन की नाकामी से कई मरीज उपचार के लिए तरसते रहे। जिलेभर में चिकित्सक सामूहिक अवकाश पर रहे तो कई जगहों पर ऐसे भी मरीज थे जिनका उपचार सही ढंग से सरकारी चिकित्सालयों में नहीं हो सका। मजबूरी में उन्हें निजी अस्पतालों में जाने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था।

-दिनेश कटोच के साथ छायाकार मोहिंद्र सिंह


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