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मध्यकालीन साहित्य की परंपरा विकसित करने पर बल

धर्मशाला : केंद्रीय विवि में भारतीय भाषा विभाग के सौजन्य से एक दिवसीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस

By Edited By: Published: Sat, 03 Dec 2016 12:56 AM (IST)Updated: Sat, 03 Dec 2016 12:56 AM (IST)
मध्यकालीन साहित्य की परंपरा विकसित करने पर बल

धर्मशाला : केंद्रीय विवि में भारतीय भाषा विभाग के सौजन्य से एक दिवसीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। इस परिसंवाद में आधुनिक संदर्भ में मध्यकालीन साहित्य के सारगर्भित विषय पर केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, उत्तर प्रदेश के निदेशक प्रो. नंद किशोर पांडेय विशेष वक्ता एवं गुवाहाटी असम के साहित्यकार एवं चिंतक डॉ. देवेंद्र चंद्र दास सुदामा विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस अवसर पर मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता डॉ. रोशनलाल शर्मा ने विशेष वक्ता एवं विशेष अतिथि का स्वागत एवं अभिनंदन किया। प्रो. नंद किशोर पांडेय ने मध्यकालीन साहित्य की परंपरा एवं विरासत के विविध पहलुओं को रेखाकित किया। उन्होंने मध्यकाल के समस्त कवियों एवं संतों के जीवन तथा रचनाओं की वर्तमान प्रासंगिकता के बारे में जानकारी प्रदान की। आधुनिक समय में मध्यकालीन साहित्य की परंपरा को विकसित करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने हिंदी के अतिरिक्त साहित्य में लोक भाषाओं की महता पर भी अपने विचार रखे। साहित्य केवल व्यक्ति की बौद्धिकता को ही जागृत नहीं करता, बल्कि इतिहास, समाज एवं संस्कृति को समझने तथा मनुष्य की समन्वय तथा समायोजन की प्रवृत्ति को भी सुदृढ़ करता है। परिसंवाद के द्वितीय सत्र में गुवाहाटी असम के साहित्यकार एवं चिंतक डॉ. देवेंद्र चंद्र दास सुदामा ने मानव निर्माण के लिए नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा केवल अर्थोपार्जन तथा भोग के लिए नहीं है। शिक्षा का अर्थ त्याग की भावना को बल प्रदान करना है ताकि मनुष्यता का भाव प्राणीमात्र में विद्यमान रहे।


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