कांगड़ा शैली को जीवन का रंग दे गए टाक
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : कांगड़ा कलम के चितेरे ओपी टाक के सोमवार को पंचकूला में देहांत के बाद शहर
जागरण संवाददाता, धर्मशाला : कांगड़ा कलम के चितेरे ओपी टाक के सोमवार को पंचकूला में देहांत के बाद शहर के डिपो बाजार के रंग भले ही पहले जैसे हों, कांगड़ा कलम के रंग जरूर ठिठके होंगे। अब वह ठहाका सुनाई नहीं देगा...अब वह जीवंत और स्नेही मुस्कान दिखाई नहीं देगी।
वास्तव में देश विभाजन का स्याह रंग देख चुका एक किशोर अपने रंगों को बचाने में इतना सफल रहा कि उसने कांगड़ा शैली के रंग भी सहेज लिए। वह पीछे छोड़ आया था अपनी जमीन, अपना घर और एक साझा विरसा। उसके परिवार को होशियारपुर के पास साहबा सड़ोआ में ठिकाना मिला। 1959 में वह कांगड़ा पहुंच गया। केवल समय को पता था कि समय का भगाया हुआ यही किशोर एक दिन कांगड़ा चित्रकला शैली को जीवन में देने वालों में अपना नाम दर्ज करवाएगा। हुआ भी ऐसा ही।
धर्मशाला आकर उन्होंने आर्ट एंड क्राफ्ट के शिक्षक के रूप सेवाएं देना शुरू किया और कालांतर में राज्य शिक्षक सम्मान प्राप्त किया। मध्य प्रदेश सरकार ने 2000 में उन्हें प्रतिष्ठित तुलसी सम्मान दिया। संस्कार भारती ने भी उन्हें सम्मानित किया। 1995 में जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान धर्मशाला से सेवानिवृत्त होने के बाद तो उनका पूरा ध्यान पेंटिग की ओर रहता था।
गुरु गुलाबू राम से उन्होंने रंगों की समझ सीखी, ब्रश बनाना और उसे चलाना सीखा। यह सीखा कि रंग कैसे बनते हैं, किस वनस्पति से कौन सा रंग मांगना है। फिर चंदू लाल रैणा के साथ उनका सान्निध्य रहा। उन्होंने हिंदू पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त गुरु ग्रंथ साहिब और इस्लामी इतिहास से संबंधित 5000 से अधिक चित्र बनाए। कई नवोदित कलाकारों को कागड़ा कलम की बारीकियां सिखाईं। वह कागड़ा कलम के लिए पूरी तरह प्राकृतिक रंगों व अन्य प्राकृतिक सामग्री का ही प्रयोग करते थे। इसके अलावा गुरु-शिष्य परंपरा के तहत भी उन्होंने कई लोगों को तैयार किया।
शिमला में बतौर जिला राजस्व अधिकारी तैनात उनके छोटे पुत्र प्रवीण टाक कहते हैं, 'पढाई के लिए हमारी सिटिंग बनाने का श्रेय उन्हें इस नाते से भी जाता है कि वह लगातार 18 घंटे तक पेंटिंग्स पर काम करते थे। और हमें बैठना पड़ता था। उठने के लिए कोई बहाना ही नहीं था। एक दोस्त पिता की तरह उन्होंने हमें हमेशा प्रोत्साहित किया। मुझे नहीं पता कि कांगड़ा शैली का भविष्य क्या है लेकिन इतना मानता हूं कि जो पिता जी ने किया, उसे याद रखा जाना चाहिए।'
सोमवार को पंचतत्व में विलीन हुए 76 वर्षीय प्रख्यात चित्रकार ओपी टाक एक कलाकार के रूप में अब भी अपने चाहने वालों के दिलों में रहेंगे।
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उनका योगदान अविस्मरणीय
'मैं उन्हें तब से जानता हूं जब वह स्वर्गीय चंदू लाल रैणा के पास मिलते थे। वह हमारे सीखने का दौर था जबकि श्री टाक का पूरा जलवा हुआ करता था। मुझे उनके जाने का इतना अफसोस हुआ है कि समझ में नहीं आता किन शब्दों में क्या कहूं। कांगड़ा शैली के लिए उनके योगदान को भुला पाना किसी के लिए संभव नहीं है लेकिन दुख यह होता है कि जीवन के अंतिम दौर में वह कुछ गुमनामी जैसी में चले गए थे। ..शायद इसी सच्चे कलाकार की नियति है। उन्हें श्रद्धांजलि।'
-विजय शर्मा, पहाड़ी शैली के लिए पद्मश्री से अलंकृत चित्रकार ।