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'नी मैं कमली यार दी' पर झूमा पंडाल

By Edited By: Published: Fri, 01 Aug 2014 01:01 AM (IST)Updated: Fri, 01 Aug 2014 01:01 AM (IST)
'नी मैं कमली यार दी' पर झूमा पंडाल

संवाद सहयोगी, चंबा : मिंजर मेले की पांचवीं सांस्कृतिक संध्या गायिका दीक्षा पीयूष के नाम रही। उन्होंने रात नौ बजे के करीब मंच संभाला और कार्यक्रम खत्म होने तक दर्शकों का मनोरंजन करती रहीं। दीक्षा ने 'नी मैं कमली यार दी' से गाने की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक धमाकेदार गानों की प्रस्तुतियों से पंडाल में बैठे दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

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इसके बाद उन्होंने 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को', 'बेबी डॉल', 'जवानी जानेमन', 'जब छाए तेरा जादू', 'तेरी गलियां', 'सुनो न संगेमरमर', 'कभी जो बादल बरसे','आइलवयू', 'हलकट जवानी', 'एबीसीडी', 'सनी-सनी', 'एवेंई-एवेंई लूट गया', 'दिल्ली वाली गर्ल फ्रेंड', 'लंदन ठुमकदा', 'गंदी बात', 'साड़ी के फॉल सा' तथा 'अम्मा पुछदी' पर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। इसके साथ ही गायक साहिल सरगम ने भी अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को पंडाल में बांधे रखा। 'चन्ना वे', 'तैनू मैं लव करदा', 'देसी गर्ल' तथा 'अखियां नू रैन' पर धमाकेदार प्रस्तुती दी। इसके अलावा पांचवीं संध्या में मंडी से दीपक, चंबा से यामिनी, सलूणी से भावना जरयाल, सरस्वती कलामंच चंबा, राजेश कुमार आरती म्यूजिकल ग्रुप, बंदना कलामंच के कलाकारों ने मिंजर मेले की पांचवीं संध्या को यादगार बना दिया। बंदना कलामंच के कलाकारों ने बेहतरी नृत्य पेश कर खूब तालियां बटोरी।

इससे पूर्व संध्या की शुरूआत गृहरक्षक बैंड की मधुर धुन से हुई। जवानों ने जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा धुन बजाई। इस दौरान पंडाल में लोगों की काफी भीड़ जुटी रही। इसके बाद स्थानीय कलाकारों ने भी अपनी-अपनी मधुर प्रस्तुतियां से लोगों का मन मोह लिया। दिन को साढे़ बारह से एक बजे तक जीत राम एंड पार्टी ने हरणातर गाया। इसके बाद बनीखेत के सुरेंद्र कुमार तथा अनिल ने प्रस्तुती दी। वहीं डिंपल शर्मा ने मेरा साया साथ होगा तथा उड़े जब-जब जुल्फें तेरी, विकास ने साई तेरे नाम के दिवाने गाकर लोगों का मनोरंजन किया। सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत मुसादा गायन से हुई।

इसके बाद राजेंद्र ने आ मिल सावल यारा, सुभाष ने सुनो न संगेमरमर, मंगले री रेहड़ी, साएं-साएं मत कर राविये, राजेश ने सारा-सारा दिन, मुंदरी बनाई फिरे, तैनू सौणिये बुलोंदे जान-जान, तू बी रह गया अधूरा सुभाष ने छम-छम बरखा लगोरी कुंडी वालिये, सुकी धारा रे गोरु हो, कालेया भौंरा, अपूर्वा ने संवार लूं, संगेमरमर, अनिल ने कभी आ मिल सावल तथा सुरेश ने अब तेरे बिन जी लेंगे हम गाकर खूब समां बांधा।


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