ऐसे में कैसे बचें वतन पर मिटने वालों के निशां?
सुरेंद्र जम्वाल/विनोद चंदेल, घुमारवीं
लाखों रुपये का बजट पर्यटन विभाग से मिला। दो लाख रुपये घुमारवीं हलके के विधायक राजेश धर्माणी ने भी ऐच्छिक निधि से दिए। नगर परिषद घुमारवीं ने अपने पल्ले से भी लगभग दो लाख रुपये खर्च दिए। शहीदों के नाम पर कंक्रीट का एक ढांचा तैयार कर लिया गया। इसी ढांचे में मनोरंजन के मकसद से एक पार्क भी जोड़ लिया गया। अब न तो पार्क में मनोरंजन के लिए किसी ने आज तक पांव रखा और न ही शहीदों के नामों के साथ न्याय हो पाया।
नगर परिषद ने बातें बड़ी-बड़ी कीं। शहीद स्मारक में शहीदों के नाम अंकित करने के सपने दिखाए लेकिन उद्घाटन हुआ नहीं कि अब शहीद स्मारक में कूड़ा बिखरा पड़ा है। है शहीद स्मारक लेकिन न तो किसी शहीद का नाम और न ही उनके बलिदान को जीवंत करती कोई इबारत वहां लिखी है। क्या यह शहीदों की शहादत के साथ मजाक नहीं है? क्या नगर परिषद घुमारवीं सिर्फ पैसा खर्च कर डालने के लिए ही इस तरह के कामों पर पैसा पानी की तरह बहाती है? क्या यह हलके के विधायक राजेश धर्माणी की ओर से शहीदों के सम्मान व उनके स्मरण के लिए किए गए प्रयास पर नगर परिषद का पलीता नहीं है? नगर परिषद के ईओ कहते हैं कि हाल ही में यह स्वतंत्रता सेनानी एवं शहीद स्मारक बनाया गया है। इस स्मारक में शहीदों के नाम लिखे जाने थे। यह योजना पहले से ही थी। शहीदों के नाम ज्यादा हो गए। इसलिए नहीं लिख पाए। उन्होंने माना कि पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड की ओर से लिस्ट परिषद को दे दी गई थी। वह इस नए बने पार्क व शहीद स्मारक की साफ-सफाई का इंतजाम करवा रहे हैं। अध्यक्ष रीता सहगल भी यही कह रही हैं कि शहीदों के नाम ज्यादा थे। इसलिए नहीं लिख पाए हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं। मार्च में नगर परिषद ने घुमारवीं के एसडीएम कार्यालय के पास एक पार्क व शहीद स्मारक का निर्माण करवाया। शहीद स्मारक बनाने के पीछे विचार हलके के विधायक राजेश धर्माणी का था। इस मद पर 10 लाख रुपये खर्च किए गए। शहीद स्मारक के बीच में ही पार्क भी तैयार कर लिया गया। मौके का मुआयना करने पर देखने को जो मिला, उसकी तस्वीरें बता रही हैं कि किस तरह से सरकारी एजेंसियां सिर्फ शहीद स्मारकों व मनोरंजन पार्को के नाम पर सिर्फ पैसा खपा डालने के प्रयास में रहती हैं। शहीद स्मारक के नाम पर सिर्फ एक कंक्रीट का ढांचा है और कुछ नहीं। न तो किसी स्वतंत्रता सेनानी का नाम और न ही किसी शहीद फौजी का नाम वहां है। मौके का हाल ऐसा है कि जब से उद्घाटन हुआ है, तब से नगर परिषद ने इसकी देखभाल के लिए मुड़कर नहीं देखा। सवाल यह है कि जब स्मारक में शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों का कोई जिक्र ही नहीं और कोई स्मृति नहीं तो फिर शहीदों के नाम पर इस तरह से पैसा बहाने की क्या जरूरत है? वहीं, पूर्व सैनिक कल्याण बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर कार्यालय से अधीक्षक ने बताया कि हलके के विधायक राजेश धर्माणी ने शहीदों की सूची मांगी थी जिसे नगर परिषद को भेज दिया गया है। अब स्मारक में इस सूची को प्रदर्शित करना नगर परिषद का ही काम है।