न हाथ मिल पाए और न ही दिल
राजेश्वर ठाकुर, बिलासपुर
घुमारवीं व सदर विधानसभा हलकों में भाजपा के नेताओं को एक मंच पर लाए जाने के बावजूद पार्टी में भीतरी तौर पर जारी गुटीय लड़ाई अब तक थमी नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की ओर से दोनों हलकों में भाजपा के नेताओं को लोकसभा चुनाव में पार्टी हित में एक साथ सक्रिय करने के प्रयास का इतना ही असर हुआ है कि कहने भर के लिए पार्टी के ये नेता सक्रिय दिख रहे हैं लेकिन पार्टी के लिए सभी एक साथ एक रास्ते पर चलते हुए वोट मांगें, ऐसा न तो अब तक घुमारवीं में नजर आया है और न ही सदर विधानसभा हलके में। इन नेताओं के न तो हाथ मिल पाए हैं और न ही दिल मिले हैं।
सदर में तो एक नेता विशेष के समर्थक जैसे मजबूरी में ही सभाओं में पहुंच रहे हैं। दो दिन पहले अनुराग ठाकुर की सदर विधानसभा हलके में इस नेता विशेष के समर्थकों की ओर से करवाई गई इक्का-दुक्का जनसभाओं में भी गिनती के ही लोग देखने को मिले। घुमारवीं हलके में भाजपा में पिछले दो दशक में कई नेता उभर आए हैं। इनकी तादाद 12 से ज्यादा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी टिकट के मामले में आखिरी दौर में करीब छह लोग ऐसे रहे थे कि जिनके नाम पर चर्चा अंत तक रही। इनमें कुछ महिलाएं भी शामिल हैं। इस बार तो आने वाले दिनों में टिकट के दावेदारों की तादाद और बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव से पहले घुमारवीं विधानसभा हलके से अपने बेटे अनुराग ठाकुर को लीड सुनिश्चित करने के लिए धूमल ने हलके में कई नए पुराने समीकरणों का प्रवाह सीधे पार्टी की ओर मोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने हलके के पूर्व विधायक केडी धर्माणी को भाजपा में शामिल कर लिया। इससे केडी की भी एक गरज पूरी हो गई कि वह अपने भाई महेंद्र धर्माणी को हलके के भाजपा के सियासी मंच तक पहुंचाने की कोशिश में थे। धूमल ने कांग्रेस से कभी अलग होने वाले राकेश चोपड़ा को भी भाजपा में शामिल करवा लिया। अब इसी हलके में भाजपा से भविष्य में टिकट चाहने वालों की तादाद और बढ़ गई है। माना जा रहा था कि घुमारवीं में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन में जिस तरह से धूमल के मंच पर पार्टी के हलके से जुड़े हुए तमाम प्रभावशाली नेता एवं टिकट के दावेदार पहुंचे थे, उससे ये लोग एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगे और लोकसभा चुनाव के मोर्चे पर मिलकर काम करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है। इन तमाम नेताओं में घुमारवीं हलके में दूरिया बरकरार हैं। सभी अपने-अपने रास्ते पर चल रहे हैं। सदर हलके की हालत में भी कुछ ज्यादा सुधार नहीं है। वहां गुटीय राजनीति हावी है। पार्टी के गुट विशेष के मंच से तो काम हो रहा है लेकिन दूसरे खेमों से सिर्फ दिखावा हो रहा है। अनुराग ठाकुर दो दिन पहले बिलासपुर आए थे। हलके से ही जुड़े हुए जाने-माने एक नेता विशेष के उन समर्थकों जिन्हें खुद धूमल समझाकर गए थे, उनकी ओर से आयोजित की गई जनसभाओं में भी कोई खास चमक नजर नहीं आई। लोकसभा चुनाव में सदर विधानसभा हलके से ही पार्टी की गुटीय लड़ाई में जारी शह-मात के कारण भी बड़े पैमाने पर भितरघात होने की आशंका अभी से ही नजर आने लगी है।