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दिल के मरीज हो रहे युवा व महिलाएं

अधिक देर तक बैठकर काम करना और तनाव भरी नौकरी युवाओं को व दोहरी जिम्मेदारी महिलाओं को दिल का मरीज बना रही है। इसके चलते हृदय रोग से प्रभावित युवाओं और महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। फोर्टिस एस्कॉ‌र्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली के चेयरमैन व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.अशोक सेठ ने आंकड़ों के अध्ययन के बाद यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा जीवन शैली युवाओं व महिलाओं के स्वास्थ्य पर घातक असर डाल रही है।

By Edited By: Published: Fri, 07 Feb 2014 01:10 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2014 01:10 PM (IST)
दिल के मरीज हो रहे युवा व महिलाएं

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। अधिक देर तक बैठकर काम करना और तनाव भरी नौकरी युवाओं को व दोहरी जिम्मेदारी महिलाओं को दिल का मरीज बना रही है। इसके चलते हृदय रोग से प्रभावित युवाओं और महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। फोर्टिस एस्कॉ‌र्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली के चेयरमैन व हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.अशोक सेठ ने आंकड़ों के अध्ययन के बाद यह जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि मौजूदा जीवन शैली युवाओं व महिलाओं के स्वास्थ्य पर घातक असर डाल रही है।

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डॉ.अशोक सेठ का कहना है कि कोरोनरी आर्टरी डिजीज के कारण पिछले आठ साल में अस्पताल में भर्ती होने वाले 45 वर्ष से कम उम्र के मरीजों की संख्या में सौ फीसद की बढ़ोतरी हुई है। इनमें अधिकांश मरीज 25 वर्ष से कम आयु के हैं। डॉ. सेठ ने कहा कि पहले महिलाओं को बाइपास सर्जरी कराने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती थी। 90 के दशक के अंतिम वर्षो में महिलाओं में बाइपास सर्जरी की दर छह फीसद थी, जो अब बढ़कर 15 फीसद हो गई है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को घर और दफ्तर दोनों की जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। इसके चलते उत्पन्न तनाव के कारण महिलाएं हृदय की बीमारी से प्रभवित हो रही हैं। वहीं, दफ्तर में बिना विराम के लगातार चार या पांच घंटे काम और तनाव भरी नौकरी युवाओं को हृदय का मरीज बना रही है। तनाव में वे सिगरेट व तंबाकू का सेवन करने लगते हैं। इससे भी बीमारी बढ़ रही है और यह बेहद खतरनाक संकेत है। उन्होंने कहा कि युवाओं में हृदय की बीमारी के बढ़ते मामलों को देखते हुए संस्थान कंपनियों व बीपीओ के साथ मिलकर इस दिशा में काम करेगा। इसके अलावा नौ व 10 फरवरी को राजधानी में हृदय की बीमारी व इलाज पर एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

बच्चे भी खासे प्रभावित

बच्चों में भी हृदय की सर्जरी करने के मामले बढ़े हैं। 1988 में ऐसे तीन मामले थे जबकि 2013 में इनकी संख्या बढ़कर 1869 हो गई है।

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