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ऐसे हो सकती है रीढ़ की हड्डी मजबूत

सामान्य तौर पर उम्र बढ़ने पर खासकर पचास साल की उम्र के बाद रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में विकार आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन ऐसे विकारों का अब इलाज संभव है.. उम्र बढ़ने के कारण रीढ़ की हड्डी में आए विकार को स्पाइनल डीजनरेटिव डिजीज कहा जाता है। स्पाइन के इस विकार में नसें (न्

By Edited By: Published: Tue, 30 Sep 2014 09:56 AM (IST)Updated: Tue, 30 Sep 2014 09:56 AM (IST)
ऐसे हो सकती है रीढ़ की हड्डी मजबूत

सामान्य तौर पर उम्र बढ़ने पर खासकर पचास साल की उम्र के बाद रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में विकार आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन ऐसे विकारों का अब इलाज संभव है..

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उम्र बढ़ने के कारण रीढ़ की हड्डी में आए विकार को स्पाइनल डीजनरेटिव डिजीज कहा जाता है। स्पाइन के इस विकार में नसें (न‌र्व्स) स्पाइन के संकरे मार्ग में फंसकर जाम हो जाती हैं।

लक्षण

रीढ़ की हड्डी में आने वाले विकार के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं..

-दोनों पैरों में सुन्नपन महसूस होना या फिर चीटियों के चलने जैसा आभास होना।

-पैरों में जलन महसूस होना।

-कमर में दर्द होना।

-पैरों में सियाटिका की समस्या होना।

-पैरों में कमजोरी आना।

-मल-मूत्र विसर्जन पर नियंत्रण खोना।

शुरू में उपर्युक्त लक्षणों के प्रकट होने पर पीड़ित व्यक्ति को कुछ देर बैठने पर आराम मिल जाता है, लेकिन वक्त गुजरने के साथ मरीज न चल पाता है और न खड़ा हो पाता है। अंतत: वह बिस्तर पकड़ लेता है। इस स्थिति तक पहुंचने में कुछ साल लग जाते हैं। इस दौरान पीड़ित व्यक्ति डॉक्टर को दिखाता है व दवाओं से ही इलाज कराता है।

दूर करें भ्रांतियां

आम तौर पर इस बीमारी के इलाज में दवाएं बेअसर हो जाती हैं। इस स्थिति में बीमारी का स्थायी समाधान सर्जरी ही है, लेकिन तमाम लोग सर्जरी कराने से कतराते हैं। इसका मूल कारण लोगों में व्याप्त यह भ्रांति है कि रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के बाद दोनों टांगें बेकार हो जाती हैं और फिर पूरा जीवन बिस्तर पर ही व्यतीत करना पड़ता है। दुर्भाग्यवश ऐसी सोच अनेक पढ़े-लिखे लोगों की भी है।

आज विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हम दूसरे ग्रहों की ओर जाने की तैयारी कर रहे हैं और साथ ही मनुष्य के कृत्रिम अंग विकसित करने और उन्हें ट्रांसप्लांट करने के तरीके ढूंढ़ रहे है। वही दूसरी ओर रीढ़की हड्डी की बीमारी के बारे में तमाम लोगों में भ्रांतियां व्याप्त हैं। इस कारण वह अपनी जिंदगी को अपंग सरीखा बना लेते है।

इलाज

इस बीमारी को आसानी से सर्जरी के द्वारा ठीक किया जा सकता है। सर्जरी के द्वारा रीढ़ की बढ़ी हुई हड्डी को काटकर नसों को खोला जाता है। जिन लोगों में बढ़ती आयु के कारण स्पाइन अस्थिर(अनस्टेबल) हो जाती है, उनमें मजबूती के लिए पेंच व रॉड स्पाइन सर्जरी के दौरान ही डाल दिये जाते हैं। यह स्पाइन सर्जरी उतनी ही सुरक्षित है, जितनी की हार्निया या गॉल ब्लैडर की सर्जरी।

इस बीमारी से बचने के लिए नियमित व्यायाम करना और वजन नियंत्रित रखना जरूरी है। रीढ़ की हड्डी को कसरत द्वारा लचीला रख कर भी इस मर्ज से बचा सकता है।

(डॉ.अमिताभ गुप्ता,स्पाइन सर्जन, इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर, नई दिल्ली)

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