उम्र कुछ भी हो दिल जवान रहे
वृद्धावस्था में, विशेषकर हृदय रोगों से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
वृद्धावस्था एक जीवन-चक्र है। वृद्धावस्था में स्वस्थ रहना अपने आप में एक उपलब्धि है। आयु बढऩे के साथ धमनियां कठोर और संकरी हो जाती हैं, उनका लचीलापन कम हो जाता है। उनमें रक्तप्रवाह मंद एवं शिथिल हो जाता है। धमनियों में कोलेस्ट्रॉल और कैल्शियम खनिज जमा हो जाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह में बाधा पड़ती है। फलस्वरूप, हाई ब्लड प्रेशर और दिल का दौरा पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। हृदय रोग के खतरे को ये कारक भी बढ़ा देते हैं। जैसे धूम्रपान, कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा, हाई ब्लड प्रेशर, मानसिक तनाव, शारीरिक श्रम की कमी, मधुमेह और मोटापा आदि।
इन सब खतरों की पहचान कर युवावस्था से ही जीवन-शैली संतुलित और नियंत्रित रहे, तो वृद्धावस्था में हृदय रोगों से बचा जा सकता है। वृद्धावस्था में, विशेषकर हृदय रोगों से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।
वसा का प्रयोग सीमित रखें
घी, मक्खन, तले हुए पदार्थ, आइसक्रीम और मांस का सेवन बहुत सीमित रखना चाहिए। अधिक वसायुक्त व मसालेदार व्यंजन से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक बढ़ती है, जिससे धमनियों में कड़ेपन से संबंधित एथेरोस्क्लीरोसिस नामक रोग हो जाता है। हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और लकवा की संभावना भी बढ़ जाती है। प्रतिदिन 5 चम्मच से अधिक वसा या तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।
सब्जियों का महत्व समझें
रेशेदार सब्जियां और फल आंतों में वसा को सोखने में बाधा डालते हैं। इसलिए शरीर में वसा जमा नहीं हो पाती। रेशेदार भोजन के सेवन से हृदय रोग की संभावना कम हो जाती है। दिन में पांच से छह बार सब्जियों और फलों का सेवन करना चाहिए। प्रतिदिन चार से पांच बार अनाज, रोटी और ब्राउन ब्रेड का सेवन करना चाहिए।
नमक कम लें
कम नमक के सेवन से हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है। एक आम भारतीय के आहार में नमक की मात्रा लगभग 17 ग्राम है, जो निर्धारित मात्रा 5 ग्राम से तीन गुना से अधिक है। इसलिए नमक का आधी चम्मच (3 ग्राम) से अधिक सेवन न करें। प्रतिदिन लगभग 30 मिनट तक टहलना जरूरी है। टहलना जीवन-शैली का प्रमुख आधार है और इससे शरीर निरोगी रहता है।
तनाव से दूर रहें
वृद्धावस्था में एकाकी जीवन उदासीनता को पैदा करता है। आज युवा अधिक महत्वाकांक्षी हो गए हैं। उनके पास घर के बड़े-बूढ़ों के लिए समय नहीं है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। एकाकी जीवन जीना, उपेक्षा, अनिश्चितता, असुरक्षा की भावना आदि एक अभिशाप बन जाते हैं और तन व मन के रोग इसके साथ जुड़ जाते हैं। इसलिए बुजुर्ग अपनी जीवनशैली नियंत्रित करने के लिए संगीत, बागवानी, चित्रकारी व पुस्तक पढऩे का शौक पालें और अपनी सोच को सकारात्मक रखें।
डॉ.अनिल चतुर्वेदी
फिजीशियन व जीवन-शैली
रोग विशेषज्ञ, दिल्ली