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दमा पर करें दमदार नियंत्रण

उत्तर भारत का मौजूदा मौसम दमा से ग्रस्त लोगों के लिए तकलीफें पैदा कर सकता है, लेकिन इन तकलीफों का समाधान भी है...

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 18 Mar 2015 03:12 PM (IST)Updated: Wed, 18 Mar 2015 03:20 PM (IST)
दमा पर करें दमदार नियंत्रण

उत्तर भारत का मौजूदा मौसम दमा से ग्रस्त लोगों के लिए तकलीफें पैदा कर सकता है, लेकिन इन तकलीफों का समाधान भी है...

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बदलते मौसम में दमा (अस्थमा)के मरीजों में खांसी और सांस के लक्षणों में वृद्धि हो जाती है। वातावरणीय कारकों और शारीरिक प्रतिरक्षा तंत्र में होने वाले आंतरिक बदलाव के कारण दमा पीडि़तों की समस्या बढ़ जाती है।

मौसम का दुष्प्रभाव

दमा में रोगी की सांस की नलियों में बदलते मौसम के प्रभाव से सूजन और सिकुडऩ आ जाती है। परिणामस्वरूप रोगी को सांस लेने में कठिनाई होती है। ऐसे कारकों में धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, सिगरेट, बीड़ी का धुआं, औद्योगिक वायु प्रदूषण और सीलन प्रमुख कारक हैं। इसके अलावा फास्टफूड्स, मानसिक चिंता, पालतू जानवर और पेड़ पौधों और फूलों के परागकण दमा की समस्या बढ़ाने के प्रमुख कारक हैं।

इन कारकों के संपर्क में आते ही मरीज के शरीर में मौजूद विभिन्न रासायनिक पदार्थ स्रावित होते हैं, जिनसे सांस नलिकाएं संकुचित हो जाती हैं। सांस नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन आ जाती है और उसमें बलगम बनने लगता है। इन सभी से दमा के लक्षण गंभीर रूप ले लेते हंै।

लक्षण

- खांसी जो रात में और गंभीर हो जाती है।

- सांस लेने में कठिनाई।

- छाती में कसाव व जकडऩ।

- सीने से घरघराहट जैसी आवाज आना।

- गले से सीटी जैसी आवाज आना।

- बार-बार जुकाम होना।

पहचान

अधिकतर लक्षणों के आधार पर दमा की पहचान की जाती है। डॉक्टर द्वारा कुछ परीक्षण जैसे सीने में आला लगाकर पता करना, सीने का एक्स-रे और फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच (स्पाइरोमीट्री) द्वारा दमा की डायग्नोसिस की जाती है।

क्या करें

- दमे की दवा हमेशा अपने पास रखें और कंंट्रोलर इन्हेलर हमेशा समय से लें।

- फेफड़ों को मजबूत बनाने के लिए सांस का व्यायाम करें।

- ठंड से अपने को बचाकर रखें।

- संक्रमण से बचाव के लिए अगर किसी व्यक्ति को वाइरल बुखार और जुकाम होता है, तो उसे रूमाल या तौलिये के अलावा टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करना चाहिए, जिसे प्रयोग के बाद फेंका जा सके। इससे परिवार के अन्य सदस्य सुरक्षित रहेंगे।

- खान-पान में अधिक से अधिक तरल पदार्थ जैसे पानी और मौसमी फल (जिसमें विटामिन सी होता है) जैसे संतरा, आंवला, पपीता और हरी सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए।

- गले से सीटी जैसी आवाज आना।

- सांस की अन्य बीमारियों के मरीजों को अपने डॉक्टर से इन टीकों(वैक्सीन) की जानकारी लेनी चाहिए। इन्फ्लुएंजा के इस वार्षिक टीके से मौसम परिवर्तन होने से होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है।

क्या न करें

- प्रमुख एलर्जन (यदि मालूम हो) के संपर्क में आने से बचें। एलर्जन वे पदार्थ या वस्तुएं होती हैं, जिनके संपर्क में आने से व्यक्ति विशेष में दमे का दौरा बढ़ जाता है।

- घरों में जानवरों को न पालें।

- घर में धूल को न जमने दें व गंदा न रखें।

- कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम व फास्ट फूड न लें।

- तले-भुने मसालेदार भारी भोजन, अंडा और मांसाहारी भोजन भी एलर्जी व दमा को बढ़ावा देता है।

- धूल-धुएं से अपने आपको दूर रखें।

उपचार

दमा के इलाज के लिए ये दवाएं हंै।

1. रिलीवर इन्हेलर- ये जल्दी से काम करके सांस नलिकाओं की मांसपेशियों का तनाव ढीला करते हंै और तुरन्त असर करते है। इन्हें सांस फूलने पर लेना होता है।

2. कंट्रोलर इन्हेलर- ऐसे इन्हेलर सांस नलियों में उत्तेजना और सूजन घटाकर उन्हें अधिक संवेदनशील बनने से रोकते हैं और गंभीर दौरे का खतरा कम करते हैं। ऐसे इन्हेलर को लक्षण न होने पर भी लगातार लेना चाहिए। दमा के दौरे को रोकने के लिए इन्हेलर का उपयोग डॉक्टर की सलाह के अनुसार करना चाहिए।

डॉ. सूर्यकांत त्रिपाठी

प्रमुख पल्मोनरी मेडिसिन विभाग

चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ


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