थैलेसीमिया व हीमोफीलिया का भी मुफ्त होगा इलाज
थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी गंभीर जानलेवा बीमारियों का अब जिला अस्पतालों में मुफ्त इलाज हो सकेगा। स्वास्थ्य विभाग एक मई से सभी जिला अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध कराएगी, जिससे मरीजों को हर माह ब्लड की समस्या से निजात तो मिलेगा ही, साथ ही निजी अस्पतालों में हजारों रुपये के
भोपाल ([ब्यूरो)]। थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी गंभीर जानलेवा बीमारियों का अब जिला अस्पतालों में मुफ्त इलाज हो सकेगा। स्वास्थ्य विभाग एक मई से सभी जिला अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध कराएगी, जिससे मरीजों को हर माह ब्लड की समस्या से निजात तो मिलेगा ही, साथ ही निजी अस्पतालों में हजारों रुपये के खर्च से भी राहत मिलेगी।
स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृृष्ण का कहना है कि जिला अस्पतालों में इन सुविधाओं के शुरू होने से कमजोर और गरीब तबके को सबसे अधिक फायदा होगा। कारण कि इन बीमारियों के मरीजों को हर दो--तीन माह में ब्लड की आवश्यकता होती है, जो आसानी से नहीं मिल पाता। यदि मिलता भी है तो उसके लिए अधिक दाम चुकाने होते हैं। सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क ब्लड के साथ आयरन कम करने वाली दवाएं भी मिलेंगी। उल्लेखनीय है कि भोपाल में ट्रायल रन पर गांधी मेडिकल कॉलेज में इन बीमारियों के इलाज की व्यवस्था शुरू की गई थी। इसकी सफलता को देखते हुए अब इसे एक मई से पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा।
क्या है थैलेसीमिया
ब'चों में आनुवांशिक तौर पर होने वाला यह खून का रोग है। इसमें खून में हीमोग्लोबिन बनना कम हो जाता है, जिससे पी़ि$डत को हर महीने खून च़ढवाना प़डता है। बार--बार खून च़$ढाने से शरीर में आयरन जमा हो जाता है, जिसे कम करने के लिए दवाएं खानी प़डती हैं। इस पर हर वषर्ष तकरीबन 10 हजार रपए का खर्च आता है।
हीमोफीलिया
इस बीमारी में खून का थक्का जमाने वाले फैक्टर 8, फैक्टर 9 या फिर दोनों की कमी हो जाती है। इससे शरीर के भीतरी या बाहरी हिस्सों में खून का रिसाव होने लगता है। रिसाव के चलते हाथ--पैर के जा़ेड खराब होने लगते हैं। रिसाव रोकने के लिए ऊपर से फैक्टर लगाए जाते हैं। इसमें 6 से 30 हजार रपए तक का खर्च आता है। इससे ज्यादातर पुरषष प्रभावित होते हैं। 5 हजार की आबादी पर एक व्यक्ति इससे पी़ि$डत होता है।