सीडेनहैम्स डिजीज उम्मीद न छोड़े
सीडेनहैम्स डिजीज शारीरिक अंगों पर नियंत्रण खोने की इस बीमारी में क्या-क्या सजगताएं बरतनी चाहिए और इस मर्ज का इलाज क्या है...?
सीडेनहैम्स डिजीज (एस डी) एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर है, जिसकी चपेट में किशोर-किशोरियां और नवयुवक भी आ रहे हैं। शारीरिक अंगों पर नियंत्रण खोने की इस बीमारी में क्या-क्या सजगताएं बरतनी चाहिए और इस मर्ज का इलाज क्या है...?
सीडेनहैम्स डिजीज (एस डी) को सीडेनहैम्स कोरिया, कोरिया माइनर, रूमेटिक कोरिया और सेंट वाइटस डांस के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर यानी तंत्रिका तंत्र से संबंधित विकार है।
इस विकार के होने पर रोगी के शरीर, खासकर चेहरा, हाथ और पैर में तेज, अनियंत्रित और किसी कारण के बगैर हरकत होने लगती है।
बीमारी के होने पर शुरुआत में इसके कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं, लेकिन इंफेक्शन होने के छह महीने के बाद जब रोगी गंभीर रूप से बीमार हो जाता है, तब जाकर इस मर्ज का पता चलता है।
यह बीमारी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को ज्यादा अपनी चपेट में लेती है। यह मर्ज 18 साल से कम उम्र वालों को ज्यादा प्रभावित करता है। वयस्क होने पर इस बीमारी के होने का खतरा बहुत कम होता है। आमतौर पर यह बीमारी शरीर के एक ही हिस्से को प्रभावित करती है लेकिन बीमारी के गंभीर होने पर शरीर के दोनों हिस्से इससे प्रभावित हो जाते हैं।
क्या है कारण
यह एक ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर है। ऑटोइम्यून डिस्ऑर्डर तब होता है, जब हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से हेल्दी(स्वस्थ) टिश्यूज को नष्ट करना शुरू कर देता है। इस बीमारी में भी यही होता है। ज्यादातर मामलों में सीडेनहैम्स डिजीज स्ट्रेप्टोकोकस इंफेक्शन या रूमैटिक फीवर होने पर होती है। जब इस इंफेक्शन से हमारा मस्तिष्क प्रभावित होता है, तो ऐसी स्थिति में हमारे ब्रेन या मस्तिष्क के सेल्स, खासकर बेसल गैंग्लिया
(मस्तिष्क का वह भाग, जो हमारे शरीर के मूवमेंट यानी हरकत को सहजता से नियंत्रित करता है) से संबंधित सेल्स इस इंफेक्शन की वजह से नष्ट होने लगते हैं। इस वजह से ब्रेन के सेल्स में सूजन आ जाती है और ब्रेन का हमारे शरीर की संचालन क्षमता से नियंत्रण हट जाता है।
ऐसे होती है पहचान
इस बीमारी की पहचान रोग के लक्षण, रोगी की डिटेल्ड हिस्ट्री और क्लीनिकल एग्जामिनेशन के जरिये की जाती है। कुछ मामलों में रोगी का एमआरआई परीक्षण भी किया जाता है और ब्लड टेस्ट भी कराया जाता है।
उपचार जानें
मरीज अगर समय रहते न्यूरो-फिजीशियन या न्यूरो-सर्जन की सलाह पर दवाएं लें, तो रोगी को काफी राहत मिलती है। दवाओं के जरिए मरीज के अनियंत्रित मूवमेंट को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। आमतौर पर यह रोग चार से छह महीने में स्वत: ही ठीक हो जाता है। ठीक न होने की स्थिति में डॉक्टर की सलाह पर दवाएं जारी रखें।
सावधानियां
- जब रोगी का शरीर अनियंत्रित होकर हिलने लगे, उस वक्त उसे चलने में सावधानी बरतनी चाहिए, नहीं तो उसे चोट लग सकती है।
- डॉक्टर ने जो दवाएं दी हैं, उन्हें नियमित तौर पर खाना चाहिए।
- स्ट्रेप्टोकोकस इंफेक्शन और रूमैटिक फीवर ही सीडेनहैम्स डिजीज का कारण बनते हैं। इसलिए ऐसे इंफेक्शन के होने पर रोगी को शीघ्र ही डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए।
ये हैं लक्षण
- इस बीमारी के लक्षण अलग-अलग रोगियों में अलग-अलग होते हैं। ज्यादातर मामलों में स्ट्रेप्टोकोकस इंफेक्शन होने के बाद रोगी इस बीमारी की चपेट में आता है।
- गले में सूजन आ जाती है।
- रोगी के हाथ-पैर अनियंत्रित रूप से झटके के साथ हिलते रहते हैं।
- जोड़ों में सूजन आ जाती है।
- मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं।
डॉ. सुमित सिंह न्यूरोलॉजिस्ट
आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुडगांव
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