एम्स में छाती पर उभरे असामान्य ट्यूमर का सफल ऑपरेशन
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्जरी विभाग के डॉक्टर्स ने दो रेअर का सफल ऑपरेशन किया है।
रायपुर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्जरी विभाग के डॉक्टर्स ने दो रेअर ट्यूमर का सफल ऑपरेशन किया है। यह एम्स के लिए इसलिए भी बड़ी सफलता है, क्योंकि अभी यहां सर्जरी की पूरी सुविधाएं विकसित नहीं हुई है। डॉक्टर्स ने 10 साल की बच्ची की छाती पर उभरे ट्यूमर का सफल ऑपरेशन किया है।
'फेब्रोएडेनोमा' युवतियों में कॉमन बीमारी है, लेकिन छोटी बच्चियों, किशोरियों में यह रेअर है। इसे 'जुवेनिल फेब्रोएडेनोमा' कहा जाता है, जो शारीरिक अंगों के सामान्य विकास के साथ हो सकती है। इसे सरल भाषा में छाती (ब्रेस्ट) में गठान भी कहा जाता है।
एम्स के सर्जरी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राधाकृष्ण रामचंदानी ने बताया कि 10 साल की प्रिया (बदला हुआ नाम) की जांच में पता चला कि उसकी छाती में 10 सेंटीमीटर*8 सेंटीमीटर का एक ट्यूमर है, जो ब्रेस्ट पर है। उन्होंने इस ऑपरेशन के लिए टीम तैयार की और फिर मेंबर्स के साथ प्लानिंग की गई। 10 मार्च को प्रिया का ऑपरेशन किया गया।
डॉ. रामचंदानी के अनुसार यह एक चैलेंजिंग टॉस्क था, क्योंकि बच्ची में बीमारी रेअर है और संभवता क्षेत्र में 'जुवेनिल फेब्रोएडेनोमा' का यह पहला ऑपरेशन होगा। डॉ. रामचंदानी का कहना है कि यह कैंसर नहीं है, सिर्फ एक ट्यूमर (गठान) है जो फिमेल्स में शारीरिक अंगों के विकास के साथ हो सकता है।
यह आनुवंशिक भी नहीं है, न ही इसकी कोई वजह है। जरूरी यह है कि समय पर उसका इलाज, जैसा प्रिया के केस में हुआ। ऑपरेशन टीम में डॉ. रामचंदानी के साथ एनेस्थीसिया विभाग की डॉ. नीमा, डॉ. सरिता और सर्जरी विभाग के डॉ. एन. श्रीवास्तव और डॉ. ए. हलधर शामिल थे।
एक और ट्यूमर का ऑपरेशन
डॉ. रामचंदानी के नेतृत्व में सर्जरी और एनेस्थीसिया के डॉक्टर्स ने एक और सफल सर्जरी की। केशकाल, जिला बालोद के 21वर्षीय धनेश्वर विश्वकर्मा 3 साल से बांह में एक ट्यूमर से परेशान थे। इसका आकार 7-8 साल में 8 सेंटीमीटर*7 सेंटीमीटर बढ़ चुका था। धनेश्वर ने कई अस्पतालों में जांच करवाई और वह बीते 3 महीनों अस्पतालों में भर्ती था।
एम्स के डॉक्टर्स ने जांच में पाया कि यह 'साइस्टिक लिमफेंजियोमा' का केस है, जो रेअर है। इस बीमारी की वजह से धनेश्वर 3 साल पहले अपनी पढ़ाई छोड़ चुका था। यह ऑपरेशन किसी चुनौती से कम नहीं था। क्योंकि यह कंधों से हाथ को जोड़ने वाली जगह पर था, जहां से नसों के जरिए हाथों में खून की सप्लाई होती है।
डॉक्टर्स को डर था कि कहीं नसें क्षतिग्रस्त न हो जाएं, इसके लिए भी तैयारी की गई थी, ताकि कम से कम ब्लड लास हुए उन्हें रिपेयर किया जा सके। हालांकि ऐसी स्थिति नहीं बनी। 17 मार्च को धनेश्वर का ऑपरेशन हुआ और वह अब पूरी तरह स्वस्थ है।