रीढ़ की हड्डी की टी.बी.
वास्तव में अधिकतर लोग आज भी टी.बी. को मात्र फेफड़े से जुड़ी बीमारी ही समझते हैं। इसका यह मतलब है कि रीढ़ की हड्डियों में टी.बी. होने के बारे में लोग कम जागरूक हैं।
स्पाइन सर्जन होने के बावजूद मैंने एक मरीज दिव्या शर्मा को जब यह बताया कि वह टी.बी. से पीड़ित हैं, तब वह पूरी तरह चौंक गयीं। इस पर उन्होंने मुझसे कहा कि क्या आप मजाक कर रहे हैं-डॉक्टर साहब? टी.बी. तो फेफड़े से जुड़ी बीमारी है। वास्तव में अधिकतर लोग आज भी टी.बी. को मात्र फेफड़े से जुड़ी बीमारी ही समझते हैं। इसका यह मतलब है कि रीढ़ की हड्डियों में टी.बी. होने के बारे में लोग कम जागरूक हैं।
ये हैं जांचें
रीढ़ की हड्डी की टी.बी. की जांच के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई, ईएसआर और ट्यूबरक्यूलिन स्किन टेस्ट कराया जाता है। माइको बैक्टेरियम नामक जीवाणु काइफोटिक डिफॉर्मिटी (रीढ़ की हड्डियों के संकुचन) नामक समस्या को उत्पन्न कर सकते हैं, जैसा कि दिव्या शर्मा के साथ हुआ। माइकोबैक्टेरियम जीवाणु टी.बी. से ग्रस्त व्यक्ति के खून या सांस के जरिये शरीर में पहुंचता है। यह बैक्टीरिया कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण शरीर में फलता- फूलता है और रक्त के प्रवाह में मिल जाता है। इसके बाद यह शरीर के कई अंगों (रीढ़ की हड्डियों को भी)को भी प्रभावित कर सकता है। यह टी.बी. रीढ़ की हड्डी को संकुचित कर देती है। इस कारण तंत्रिका तंत्र से संबंधित कई समस्याएं (न्यूरो प्रॉब्लम्स) उत्पन्न हो जाती हैं।
मर्ज का इलाज
रीढ़ की हड्डी में टी.बी. की बीमारी का इलाज एंटीट्यूबरक्युलर कीमोथेरेपी से किया जाता है। इस थेरेपी की सुविधा अधिकतर सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में उपलब्ध है। नेशनल ट्यूबरक्यूलोसिस कंट्रोल प्रोग्राम के अंतर्गत यह थेरेपी निशुल्क उपलब्ध है। चूंकि इस बीमारी में कमर की रीढ़ की हड्डी संक्रमण और पस पड़ने के कारण गल चुकी होती है, इसलिए इसे विकृति से बचाने के लिए ब्रेस (एक तरह की बेल्ट) की मदद ली जाती है ताकि रीढ़ की हड्डी को सपोर्ट मिल सके। आधुनिक थेरेपी: इन दिनों रीढ़ की हड्डी की टी.बी. का इलाज नई सिक्स ड्रग्स एटीटी थेरेपी से किया जाता है। इस थेरेपी से बीमारी को कम समय में काबू पाने में मदद मिलती है और एमडीआर टी.बी. होने की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं।
ऑपरेशन की जरूरत
अगर रीढ़ की हड्डी के आंतरिक भाग में बहुत ज्यादा पस भरा है, जो नसों (नव्र्स) को दबा रहा है, तो ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को लकवा लगने का खतरा बढ़ जाता है। इस हालत में ऑपरेशन करके पस को निकाल दिया जाता है। इन दिनों टी.बी. से क्षतिग्रस्त विकारग्रस्त वर्टिब्रा की समस्या को दूर करने के लिए थ्री डी प्रिंटिंग और कंप्यूटराइज्ड नेवीगेशन तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक के जरिये विकारग्रस्त वर्टिब्रा को आर्टीफिशियल (कृत्रिम) वर्टिब्रा से रिप्लेस (प्रत्यारोपित) कर देते हैं।
क्या हैं लक्षण
- कई सप्ताह से पीठ में भयंकर दर्द होना।
- बुखार आना।
- रात में पसीना आना।
- भूख न लगना।
- वजन का घटते जाना।
- हाथ-पैरों में काफी दर्द और अकड़न महसूस होना।
-उठने-बैठने और चलने में भी तकलीफ होना।
-डॉ सुदीप जैन, स्पाइन सर्जन, नई दिल्ली
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